शकुन और अपशकुन श्रीगणेशजी का ले नाम

गणेश जी का वाहन चूहा क्यों बना यह एक रहस्य है जो अक्सर मन में आता है. गणेश जी तो लंबोदर हैं, भारी-भरकम शरीर वाले. एक छोटा सा चूहा उनका वाहन क्यों बना. उन्हें तो हाथी या शेर की सवारी करनी चाहिए थी.

गणेश जी का वाहन चूहा के बनने की एक सुंदर कथा गणेश पुराण में आती है.

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गणेशजी-का-वाहन-चूहा-क्यों-है- गणेश पुराण

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सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि आश्रम बनाकर तप करते थे. उनकी पतिव्रता पत्नी मनोमयी इतनी रूपवती थीं कि उनके रूप पर यक्ष गंधर्व आदि सभी मोहित थे. यक्षों और गंधर्वों ने मनोमयी या मृणमयी का हरण करने का विचार तो किया लेकिन मनोमयी के पतिव्रता और सौभरि की पत्नी होने के कारण वे  साहस नहीं कर पाते थे. क्रौंच नाम एक बलशाली और दुष्ट गंधर्व स्वयं को रोक न सका.

क्रोंच ऋषि पत्नी के हरण का अवसर देखने लगा. एक बार ऋषि लकड़ियां लाने वन गए. कौंच को मनोमयी के हरण का यह उचित समय लगा. वह आश्रम में आया.

वह मनोमयी का हाथ पकड़कर खींचकर अपने साथ ले जाने लगा. ऋषि पत्नी उससे दया की भीख मांग रही थीं.  उसका भाग्य खराब था. समय सौभरि ऋषि  वहां आ पहुंचे. कौंच के इस दुस्साहस से उनके क्रोध की सीमा न रही.

उन्होंने कौंच को शाप दिया- तूने चोर की तरह मेरी पत्नी का हरण करना चाहा है, तू मूषक बन जा. तुझे धरती के भीतर छुपकर रहना पड़े और चोरी करके अपना पेट भरेगा.

शापित क्रोंच, मुनि के चरणों में गिरकर माफी मांगने लगा. उसने चरणों में गिरकर कहा- कामदेव के प्रभाव से मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई इसलिए मैंने ऐसा अपराध किया. आप दयालु हैं, मुझे क्षमा कर दें.

बार-बार माफी मांगने से ऋषि पसीज गए.

ऋषि ने कहा- मेरा शाप व्यर्थ तो नहीं जा सकता लेकिन इसमें सुधार कर देता हूं. इस शाप के कारण तुम्हें बहुत सम्मान मिलेगा.

ऋषि ने कहा- द्वापर में महर्षि पराशर के यहां गणपति गजमुख पुत्ररूप में प्रकट होंगे तब तुम उनके वाहन बनोगे, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे.

शापग्रस्त क्रोंच चूहा बन गया. उसका शरीर विशालकाय था. उद्दंडता तो उसमें पहले से ही थी. ताकत के कारण वह रास्ते में आने वाली सारी चीज़ें नष्ट कर देता.

एक बार वह महर्षि पराशर के आश्रम में पहुँच गया. वहाँ उसने आदत के अनुसार मिट्टी के सारे पात्र तोड़ दिए, आश्रम की वाटिका उजाड़ डाली. सारे वस्त्रों और ग्रंथों को कुतर दिया.

भगवान गणेश भी उसी आश्रम में थे. महर्षि पराशर ने चूहे की करतूत गणेशजी को बताई. भगवान गणेश ने उस दुष्ट मूषक को सबक सिखाने की सोची.

उन्होंने मूषक को पकड़ने के लिए अपना पाश फेंका. पाश मूषक का पीछा करता हुआ पाताल लोक तक पहुंचा. पाश मूषक के गले में अटक गया और मूषक बेहोश हो गया.

पाश में घिसटता हुआ मूषक गणेशजी के सम्मुख उपस्थित हुआ. जैसे ही होश आया उसने बिना पल गंवाए गणेशजी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा.

गणेश जी मूषक की आराधना से प्रसन्न हो गए. उन्होंने कहा- तुमने लोगों को बहुत कष्ट दिए है. मैंने दुष्टों के नाश एवं साधुओं के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है. तुम शरणागत हो इसलिए क्षमा करता हूं. मैं तुमसे प्रसन्न हूं कोई वरदान मांग लो.

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क्रौंच तो आदत से मजबूर था. गणेशजी से प्राणदान मिलते ही फिर से उसमें अहंकार जाग गया.

वह गणेशजी से बोला, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, लेकिन यदि आप मुझसे कोई इच्छा रखते हों तो बताइए. मैं आपकी एक इच्छा पूरी कर दूंगा.

मूषक की गर्वभरी वाणी सुनकर गणेशजी मुस्कुराए.  गजानन ने कहा- यदि तुम्हारा वचन सत्य है तो तुम मेरा वाहन बन जाओ.

मूषक ने बिना देरी किए ‘तथास्तु’ कह दिया. गणेशजी उस पर सवार हुए. गजानन के भार से दबकर उसके प्राण संकट में आ गए. उसने गणेशजी से अपना भार कम करके वहन करने योग्य बनाने की विनती की. अपने शरणागत पर तो गणेश जी पूरी कृपा करते ही हैं. उन्होंने उसका गिड़गिड़ाना स्वीकार लिया और अपना आकार बहुत छोटा कर लिया.

क्रौंच ने अपने स्वामी से वरदान मांगा कि वे उसका कभी त्याग न करें. उनके सवार होते ही उसकी बुद्धि खुल गई. गणेश जी ने उसकी यह इच्छा स्वीकार ली.

इस तरह मूषक का गर्व चूरकर गणेशजी ने उसे अपना वाहन बना लिया. यही कारण है कि आज भी लोग अपने घरों में चूहों के उत्पात मचाने पर भगवान गणेश को याद करते हैं. (गणेश पुराण कथा)

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