जीवनकाल में गिरिराज गोवर्धन का कम से कम एक बार स्पर्श हो जाना सौभाग्य की बात मानी जाती है. गोवर्धन परिक्रमा करने वाले भक्त गोवर्धन जी का पत्थर लाकर घर में भी रखते हैं. इसके पीछे एक बड़ा कारण है.
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बालरूप में भगवान जहां खेले हों, जिसे उंगली पर धारण किया हो उस गोवर्धन की महिमा के क्या कहने! गोवर्धन का स्पर्श हो जाना भी सौभाग्य की बात है. जैसे गंगाजी का जल पवित्र है वैसे ही गोवर्धन का पत्थर पूजनीय. गोवर्धन के पत्थर में ऐसी क्या बात है कि भक्त इसे सहेजकर रखते हैं. आपको गोवर्धन महिमा की ऐसी कथा सुनाऊंगा जो शायद आपने पहले न सुनी हो.
गिरिराज गोवर्धन के स्पर्श की जो महिमा कथा सुनेंगे वह गर्ग संहिता से ली गई है. गोवर्धन की यह माहात्म्य कथा स्वयं नारदजी ने राजा बहुलाश्व को सुनाई थी.
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कथा आरंभ होती हैः
राजा बहुलाश्व ने सेवा करके नारदजी को बहुत प्रसन्न कर लिया. वह नारदजी के शिष्य हो गए और उनसे ज्ञान प्राप्त करने लगे. नारदजी ने एक बार राजा बहुलाश्व ने पृथ्वीलोक के तीर्थों के बारे में चर्चा आरंभ की. नारदजी ने बताया कि वह वर्ष में एक बार गोवर्धनजी को प्रणाम करने अवश्य जाते हैं.
बहुलाश्व ने नारदजी से पूछा- हे देवर्षे! ऐसी क्या खास बात है गोवर्धन जी में? मुझे भी गोवर्धन जी के माहात्म्य कथा सुनने की इच्छा हो रही है. मेरी जिज्ञासा शांत करें.
बहुलाश्व के निवेदन पर नारद जी ने गोवर्धन महिमा सुनानी शुरू की. गौतमी गंगा यानी गोदावरी नदी के तट पर विजय नामक एक ब्राह्मण रहता था. विजय का कुछ कर्ज मथुरा में बकाया था. वही वसूलने वह मथुरा आया हुआ था.
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दिन में उसने वसूली की और शाम होने से पहले ही अपने रास्ते चल पड़ा. गोवर्धन गिरिराजजी तक पहुंचते-पहुंचते अंधेरा होने लगा. चूंकि विजय के हाथ एक लाठी के सिवा कोई हथियार तो था नहीं. उसे चोरों का डर महसूस हुआ. इसलिए उसने गोवर्धन जी के पास से एक गोल चिकना पत्थर उठाकर साथ रख लिया.
डर भगाने के लिए वह हरेकृष्ण हरेकृष्ण भजता जंगल के बीच से ब्रजमंडल को पार कर गया. वह थोड़ा ही आगे बढा होगा कि उसके सामने एक तीन पैरों वाला राक्षस आ खड़ा हो गया. राक्षस का मुंह उसकी छाती पर था. एक बांस लंबी उसकी जीभ लपलपा रही थी. वह विजय को निगलने को तैयार था. भूखा राक्षस विजय की ओर लपका.
विजय ने गिरिराजजी के पास से गुजरते समय गिरिराजजी का एक गोल पत्थर उठा लिया था. गिरिराजजी के दर्शन को आने वाले सहज ही ऐसा करते हैं. विजय को कुछ न सूझा तो उसने आत्मरक्षा के लिए वही पत्थर राक्षस को दे मारा.
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