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हलछट की कथा

एक गर्भवती ग्वालिन के प्रसव का समय समीप था. उसे प्रसव पीडा होने लगी थी. उसका दही मक्खन बेचने के लिये रखा हुआ था. वह सोचने लगी यदि बालक ने जन्म ले लिया तो दही मक्खन नहीं बिक पायेगा.

यह सोच कर वह उठी और सिर पर दही मक्खन की मटकी रखकर बेचने चल दी. चलते-चलते उसकी प्रसव पीडा बढ गयी. वह झरबेरी की ओट में बैठ गयी और उसने एक पुत्र को जन्म दिया.

ग्वालिन ने बालक को एक कपडे में लपेटकर वहीं लिटा दिया और स्वयं मटकियां उठाकर आगे बढ गयी. उस दिन हरछट पर्व था. हालांकि उसका दूध-दही गाय भैंस दोनों का मिला जुला था पर उसने बेचते समय बताया कि दूध और दही भैंस का है इसलिए पूरा बिक गया.

जहां पर ग्वालिन ने बच्चे को लिटाया था वहां पर एक किसान हल चला रहा था. उसके बैल बच्चे को पडा देख बिदक गये और हल की नोक बच्चे के पेट से लगने के कारण उसका पेट फ़ट गया.

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