इच्छाधारी नाग एक ऐसा शब्द जो बचपन से ही रोमांचित करता रहा है। किस्सों-कहानियों में, फिल्मों में सुनते-देखते बड़े हुए हैं। इच्छाधारी नाग की दुनिया होती है क्या? रहस्य-रोमांच से भरी कथा में इच्छाधारी नाग के बारे में जानेंगे।
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यह कहानी है एक यायावर साधक की, जो सृष्टि के रहस्यों की तलाश में है। एक बार यह यायावर साधक जहां तहां भटकता एक ऐसे स्थान पर पहुंच गया जिसके बारे में लोगों का कहना था, कि यहां एक इच्छाधारी नाग रहता है। उस साधक ने अपना अनुभव कई जगह लिखा है। उसे ही संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साधक के पूर्वजन्मों के पुण्य थे जिसके फलस्वरुप इच्छाधारी नाग ने उसे दर्शन दिए। आइए रोमांच की एक नई दुनिया में चलें।
यह एक वास्तविक घटना है लेकिन इच्छाधारी के रहने का स्थान और साधक का नाम गुप्त रखा गया है। उस साधक को एक स्थान पर रात्रि में बड़ी तेज अलौकिक रौशनी दिखाई पड़ती थी। वह उस रौशनी को देखता तो चौंक जाता। रात में ऐसा दूधिया प्रकाश और खुशबू का झोंका। उसने वहां रहने वालों से पूछा तो सबने कहा- पुरखों से सुना था वहां कोई इच्ठाधारी नाग रहता है। हम इस डर से उधर जाते ही नहीं।
इच्छाधारी नाग है यहां पर, यह बात उस यायावर की उत्सुकता का सारी सीमाएं तोड़ने के लिए काफी थी। उन्हीं की जुबान से सुनते हैं इच्छाधारी नाग से भेंट कैसे हुई, क्या देखा? सब कुछ सारी कहानी, उसी अज्ञात यायावर साधक की जुबानी।
इच्छाधारी नाग से रोमांचक मुलाकातः
काफी मुश्किलें झेलने के बाद मैं उस स्थान पर पहुंचा, जहां पर वह इच्छाधारी नाग निवास करता था। देर रात तक इंतजार करने के बाद दूधिया प्रकाश दिखाई दिया। मैं अपने मित्र के साथ आगे बढ़ा। सांप कोई बीस मीटर दूर था लेकिन अब स्पष्ट दिख रहा था। काले रंग का विशाल नाग था, बिल्कुल काला। चाँद की रोशनी और मणि के प्रकाश में वह नीला दिख रहा था।
अचानक सांप घूमा, उसने मुड़कर मुझे देखा। उसके नेत्र ज्वाला की तरह थे। मैंने झट से दोनों हाथ जोड़ लिए और सिर झुका लिया। इस प्रकार मैंने अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी, कि हम कोई नुकसान नहीं पहुंचाने नहीं आए। सर्प ने फुंकार भरी। हम दोनों पीछे हटे क्योंकि वह क्रोध में था।
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यह महानाग बार बार अपना फन फैलाता और फिर बंद करता। ऐसा उसने कई बार किया। नाग के सर पर रखी मणि चमकती जा रही थी। इतनी ज्यादा कि आँखें चुंधिया जाती थीं।
तभी फिर से एक और फुंकार! और हम खड़े रह गए जस के तस। जैसे समय स्थिर हो गया हो। हम एक दूसरे के सामने थे। वो महानाग भी वहीँ खड़ा था। आधा शरीर उठाये। खड़े हम भी थे लेकिन आधा शरीर झुकाए। उसकी मणि का प्रकाश चमक रहा था। उसकी चमक में मेरी कमीज के अंदर पहनी हुई बनियान भी चमकने लगी थी!
मणि का प्रकाश दूधिया था। बहुत दूधिया! उसने फिर से एक फुंकार मारी, बिल्कुल ऐसे जैसे एक मरखनी भैंस या गाय आवाज़ करती है। ऐसी गरजती हुई आवाज़ आई। वो आगे बढ़ा! और हम झुक कर बैठ गए दोनों हाथ जोड़े हुए! वो और करीब आया!
तभी एक भीनी सी सुगंध आयी, यह कनेर के फूल जैसी भीनी सुगंध थी! वो और आगे आया! करीब दस मीटर रह गया!
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फिर फुंकार मारी! फन फैलाया, किसी छोटी छतरी समान फन था उसका! उसके कंठ पर चमचमाता हुआ पीले रंग का गौ-चरण चिन्ह बहुत बड़ा था।
बड़ा सा, मेरे सीने के बराबर। ये बड़ा ही विचित्र नज़ारा था। एक इच्छाधारी के सामने था मानव। वो सहस्त्र वर्षों से इस संसार में था और हमारी आयु तो कुछ न थी उसके आगे.
आदर सहित दम साधकर हम हाथ जोड़े बैठे थे, उसने फिर से फुफकार भरी। इस बार हल्की सी फुफकार, भयानक वाली नहीं. वह समझ गया था कि हम उसको नुकसान नहीं पहुंचा रहे, न ही उसकी मणि ही लेने आये हैं.
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