इंदिरा एकादशी श्राद्ध पक्ष की एकादशी है. इस इंदिरा एकादशी व्रत को करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और नारायण लोक में वे प्रसन्नतापूर्वक रहते हैं.  16 सितंबर 2017 को होगी इंदिरा एकादशी.

इंदिरा एकादशी

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जिनके पितर किसी कारण अतृप्त रह गए उन्हें मरने के बाद परलोक में कई कष्ट भोगने पड़ते हैं. पितरों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त रखने के लिए श्राद्धपक्ष में तर्पण आदि बहुत से कर्म कहे गए हैं. इंदिरा एकादशी पितृपक्ष में पड़ती है इसलिए इसका महत्व विशेष है.

जिनके पितर प्रसन्न नहीं है उनके सारे पूजन-पाठ का वह फल नहीं मिल पाता जो उन्हें मिलना चाहिए थे. जिसके बड़े-बुजुर्ग आशीर्वाद न दें उसे देवताओं का भरपूर आशीर्वाद कैसे मिलेगा. वास्तव में श्राद्ध पक्ष यही संदेश देने के लिए है. अपने पूर्वजों को प्रसन्न रखें, जीवनकाल में सेवा से और जीवन के उपरांत ऐसे कर्म करके जिनसे उनका यश बढ़े. यदि आपको ऐसा लगता है कि आपके द्वारा किए गए श्राद्ध आदि कर्म में कोई कमी रह गई होगी और उससे पितर पूरी तरह तृप्त नहीं हैं तो आपको इंदिरा एकादशी करनी चाहिए.

इंदिरा एकादशी करने से श्राद्धपक्ष में पितरों के निमित्त किए गए कर्म में जो कमी रह गई हो उसकी भरपाई हो जाती है. पुण्यधर्मा राजा इंद्रसेन के पितर परलोक में प्रसन्न नहीं थे. उन्होंने नारदजी को अपना संदेशवाहक बनाकर इंद्रसेन के पास भेजा. नारदजी ने इंद्रसेन को इंदिरा एकादशी करने का परामर्श दिया और पूरी विधि बताई.

नारदजी द्वारा कही गई इंदिरा एकादशी की विधिः

नारदजी ने जो विधि बताई थी, संक्षेप में वह इस प्रकार से है-

  • यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की दशमी से ही शुरू हो जाता है. दशमी के दिन प्रातः स्नान कर घर में पूजा पाठ करें.
  • एकादशी के दिन सुबह स्नान करें एवम् पूरे दिन के निराहार व्रत का संकल्प लें. व्रत के संकल्प की विधि वही होती है जो अन्य संकल्पों में होती है. एप्प में इसका वर्णन है.
  • फिर विधिवत श्राद्ध तर्पण करें एवं ब्राह्मणों को फलाहार करायें.
  • इसके बाद गाय, कौए एवं कुत्ते को आहार का एक हिस्सा दें.
  • स्वयं यदि फलाहार करना है तो वह रात्रि में ही करें, दिन में नहीं.
  • दिन में शालिग्रामजी का पूजन करें. यदि शालिग्रामजी नहीं है तो भगवान विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण की छवि का पूजन करें
  • विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें.
  • दूसरे दिन पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं एवं दक्षिणा दें.
  • फिर पूरे कुटुंब के साथ भोजन ग्रहण करें.

इस इंदिरा एकादशी के प्रताप से राजा इंद्रसेन को भी वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हुई थी.

 

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इंदिरा एकादशी व्रत कथाः-

युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- हे भगवन! आप मुझे आश्विन मास के कृष्णपक्ष जिसे पितृपक्ष भी कहा जाता है उसकी एकादशी का क्या नाम है, उसका क्या माहात्म्य है यह सब बताकर कृतार्थ करें.

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे धर्मराज यह एकादशी इंदिरा एकादशी कहलाती है. यह अतृप्त पितरों को तृप्त करने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली है. नारदजी के परामर्श पर माहिष्मति के राजा इंद्रसेन ने इस व्रत को किया और अपने पितरों को संतुष्ट करने के साथ ही स्वयं भी मोक्ष के अधिकारी बने.

सतयुग के समय की बात हैं इंद्रसेन नामक राजा हुआ करते थे. राजा भगवान विष्णु के प्रचंड भक्त थे. यज्ञ एवम उपवास के सभी धार्मिक कार्य पूरी श्रद्दा से करते थे. उनके नगर में भी इन नियमों का पालन होता था. नगर में सुख शांति एवम उन्नति का कारण शायद सभी का धार्मिक एवम कर्मठ होना ही था. इस कारण इंद्रसेन बहुत खुश थे.

एक दिन आकाश से नारद मुनि ने इंद्रसेन के दरबार में कदम रखा. उन्हें आता देख इंद्रसेन राजा अपने स्थान से उठ खड़े हुए और पूरे आदर के साथ उन्होंने नारद मुनि को आसन प्रदान किया.

उनके चरणों को धोकर उनकी विधिवत पूजा की. राजा द्वारा इस प्रकार मिले पूजा-सम्मान से नारद मुनि बहुत प्रसन्न हुए. कुछ देर बाद नारद मुनि ने राजा से पूछा कि आपके जीवन एवं राज्य में सब सकुशल तो हैं?

राजा इन्द्रसेन ने कहा भगवान विष्णु की कृपा से सब कुशल-मंगल है. तब नारद मुनि ने फिर से पूछा आपके राज्य में धार्मिक सत्संग एवम् यज्ञ आदि के कार्य भी नियमित हो रहे हैं?

राजा ने इसमें भी हामी जताई. इन्द्रसेन ने नारद मुनि से उनके दरबार में आने का कारण पूछा.

तब नारद मुनि ने कहा- राजन! मैं यमलोक गया था. वहां मैंने तुम्हारे पिताजी को देखा. वह बेहद दुखी थे. उन्होंने तुम्हारे लिए संदेशा भेजा है. मृत्यु के उपरांत उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई हैं इसलिए वह चाहते हैं तुम उनके लिए कुछ करो. उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजन्म में उन से एकादशी का व्रत भंग हुआ था. इसके कारण ही उन्हें मोक्ष नहीं मिला.

राजा इन्द्रसेन ने नारद मुनि से पूछा- हे मुनिवर मैं ऐसा कौन सा प्रयत्न करूं जिससे मेरे दिवंगत पिता को सुख-शांति और मोक्ष प्राप्त हो. मैं सब कुछ करने को तैयार हूं. आप कहें मुझे क्या करना होगा?

तब नारद मुनि ने कहा- श्राद्ध पक्ष में ही पितरो को मोक्ष मिलता है इसलिए तुम श्राद्ध पक्ष की एकादशी का व्रत करो. इस व्रत को करने से तुम्हारी कई पुश्तों को मोक्ष की प्राप्ति होगी. राजा इन्द्रसेन ने नारदजी से व्रत का विधि विधान पूछा.

नारदजी ने राजा को इस एकादशी की पूरी विधि बतलाई. राजा ने उस विधि से एकादशी की व्रत-पूजा की तो उसके पिता दोषमुक्त हुए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. धर्मराज ने उन्हें स्वर्ग भेज दिया.

स्वयं इंद्रसेन की भी जब जीवन अवधि पूर्ण हुई तो गरूड़ जी उन्हें बैकुंठ धाम लिवा जाने के लिए आए.

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