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पिछली कथा से आगे…दूसरा और अतिम भाग
वृंदावन का मालिक रवि अपने उद्यान के फूलों की अदृश्य शक्तियों द्वारा होने वाली चोरी से भयभीत हो गया. वह अपने आराध्य भगवान नृसिंह को पुष्प अर्पित नहीं कर पा रहा था. दुखी माली रवि ने भगवान नृसिंह से प्रार्थना की.

रवि ने सारी रात जागकर अपने बाग की पहरेदारी की थी. वह प्रभु को याद करता था कि तभी उसे शीघ्र ही नींद आ गयी. उसे सपने में भगवान नृसिंह ने दर्शन दिए.

भगवान ने कहा- पुत्र मैं जानता हूं तुम पुष्प की चोरी के कारण दुखी हो. तुमने कई दिनों से मुझे पुष्प नहीं चढ़ाए उसकी पीड़ा है. तुम्हारा परिवार भी इस कारण संकट में है. उस चोर को अवश्य दंड मिलेगा.

तुम कहीं से मेरा निर्माल्य(चढ़े हुए फूल आदि) लेकर आओ. उस निर्माल्य को बागीचे के चारों और और बीच-बीच में बिखेर दो. तुम्हारे फूलों के चोर दुष्ट से फूलों को बचाने का इससे अलग कोई उपाय नहीं है.

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