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बारह वर्ष तक गर्भ को धारण करने के कारण ऋषि पत्नी गर्भ की पीड़ा से मरणासन्न हो गईं. नौ महीने के गर्भधारण में इतना कष्ट होता है बाहर वर्ष तक हो तो क्या होगा, अंदाजा लगाइए.

भगवान श्रीकृष्ण को इस बात का ज्ञान हुआ. वह स्वयं वहां आए और उन्होंने शुक को आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा.

श्रीकृष्ण से मिले वरदान के बाद ही शुक ने गर्भ से निकलकर जन्म लिया. जन्म लेते ही शुक ने श्रीकृष्ण और अपने पिता-माता को प्रणाम किया और तपस्या के लिये जंगल चले गए.

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व्यास जी इतने लंबी प्रतीक्षा के बाद पिता बने थे. उनका पुत्र जन्मते ही वन को जा रहा है यह सोचकर वह व्यथित हो गए. न तो उन्हें पितृत्व का पूर्ण सुख मिला और न ही ऋषिपत्नी को माता का सुख प्राप्त हुआ. ऐसे में व्यासजी और उनकी पत्नी दोनों ही दुखी थे.

व्यासजी ज्ञानी थे. वह यह समझ रहे कि उनका पुत्र जो कह रहा है वह अक्षरशः सत्य है पर माया से मोहित न होने का वरदान तो श्रीकृष्ण ने शुक को दिया था, व्यासजी को नहीं.

व्यासजी मोहित हो गए. व्यासजी पुत्र के पीछे-पीछे दौड़े. ‘पुत्र!, रूको पुत्र! अपने माता-पिता को प्रेम और ममत्व से वंचित मत रखो, ऐसी बातें कहते पुकारते रहे, किन्तु शुक ने उस पर कोई ध्यान न दिया.

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व्यासजी समझते थे कि उनका पुत्र कोई साधारण जीव नहीं है. जन्म से पूर्व ही वह संपूर्ण शास्त्रों का ज्ञाता है, स्वयं महादेव से उसने ज्ञान प्राप्त किया है. महादेव और श्रीकृष्ण दोनों की असीम अनुकंपा है उस पर चाहते थे कि शुक श्रीमद्भागवत का ज्ञान प्राप्त करें.

परंतु वह पुत्र को श्रीमद्भागवत का ज्ञान दें भी तो कैसे! शुक तो कभी पिता की ओर आते ही न थे.

व्यासजी ने एक सुंदर युक्ति निकाली.

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1 COMMENT

  1. Mujha bhut khusi h ki Jo hmari sanskriti hmara ved puran lupt hota ja RHA h aur Jo hmara snatan dharm k h vo bhi apna dharmik grantho PR dhyan nhi d rhe h. Kintu Prabhusarnam app k nirmata aur unki sari team ka shraho.ya s dhnyabad deta hu. Aur prabhu s kamna krta hu ki aaga aur future m bhi dino din trakki kra. Jay ho.

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