धार्मिक व प्रेरक कथाओं के लिए प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े, लिंक-
[sc:fb]

करीब आधी रात हो चुकी थी, आँगन के पेड़ के नीचे आग जला कर माई निर्वस्त्र हो कर अपनी तांत्रिक पूजा कर रही थी; पास ही में एक चादर बिछी हुई थी।

बगल में कल्लू भी पालती मार कर बैठा हुआ था। पर शायद उसको कोई होश नही था… अचानक मुझे किसी के गुर्राने की आवाज़ सुनाई दी… मैने खड़की से झाँक कर देखा की कल्लू बड़े अज़ीब तरह से गुर्रा रहा था,

शायद वह शैतानी आत्मा उसके शरीर में प्रवेश कर चुकी थी…

इतने में माई ने आवाज़ लगाई, “संध्या? संध्या मेरी बच्ची… बाहर आ जा, तेरा वक़्त आ गया है… अब अच्छी बच्ची की तरह इस चादर पे लेट जा।  अब कितना इंतज़ार करवाएगी?…”

मैं कमरे में से हिली नहीं, मैं सिर्फ़ मां काली का स्मरण कर रही थी… मुझे ना आते देख कर माई उठ कर कमरे में आई, और बड़े प्यार से बोली, “शर्मा रही है, बेटी? चल मैं तुझे अपने साथ ले कर चलती हूँ…”

मैंने अपनी आँखें बंद की और इस बार मुझे मां काली का करुणामयी रूप नही दिखा बल्कि उनका एक रौद्र रूप दिखाई दिया… मेरा पूरा शरीर ना जाने क्यों काँपने लगा… मेरे पूरे बदन में जैसे एक बिजली सी दौड़ने लगी… बाहर जैसे मौसम का मिज़ाज़ भी बदल गया, एक तूफान सा जैसे आ गया और ज़ोर ज़ोर से बिजली कड़कने लगी…

माई ने मेरे पास आ कर मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “चल अब उठ मेरी बच्ची…”

मैने पट से अपनी आँखे खोली, कमरे में लगे शीशे में मेने अपनी परछाई देखी- मुझे लगा कि नही- यह मैं नही हूँ… मैने बलपूर्वक अपना हाथ छुड़ाया और मैने माई के सीने में एक लात दे मारी |

माई चार पाँच फिट दूर कमरे के बाहर जा गिरी और भौंचक्की हो कर मुझे देखने लगी

मैं उठ कर कमरे से बाहर आई, कमरे के बाहर दरवाज़े के पास ही एक खूंटे से कल्लू का दिया हुआ हंसिया टंगा हुआ था, मैने उसे हाथ में ले लिया… माई डर गई… वह किसी तरह से उठ कर भागी और पेड़ के नीचे रखे हुए अपने लोटे में से हाथ में पानी ले कर कुछ मंत्र बड़बड़ा कर मेरे उपर पानी के छींटे मारने लगी… लेकिन इस बार मुझे उसके तंत्र मंत्र का कोई असर नही हुआ… माई ने अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसा होते हुए कभी नही देखा था…

मैं हाथ में हंसिया ले कर धीरे धीरे आगे बढ़ती गई, माई के कदम पीछे हटते गये, मेरे मुंह से एक चीत्कार निकली…

लेकिन यह चीत्कार किसी  दर्द या फिर विवशता की नहीं थी, बल्कि ये युद्ध का एक नाद था। मेरी चीत्कार मानों एक युद्ध का ऐलान कर रही थी…

माई डर के मारे घर के पिछले दरवाज़े से बाहर भागी |

मेरे पूरे बदन में एक दिव्य शक्ति कौंध रही थी, मैं भी माई के पीछे भागी… पिछला रास्ता घर के टूटे फूटे शौचालय की तरफ जाता था और उस पतले से रास्ते के एक तरफ तालाब था और दूसरी तरफ दलदल!

माई मेरे यह रूप देख कर बहुत डर गई थी, अंघेरे में भागते हुए उसका पैर फिसल गया और वह सीघे दलदल में जा कर के गिरी और धीरे धीरे उसमें धँसने लगी |

वह चीखती चिल्लती हुई मुझसे गुहार लगाने लगी, “बिटिया, मेरी मदद कर मैं दलदल में डूब रहीं हूँ… मुझे बचा ले …”

अब मेरे मुंह से एक भारी आवाज़ निकली, “संध्या ने एक बार निस्वार्थ भाव से तेरी मदद करनी चाही…और तू उसका क्या हश्र करने वाली थी?”

“ग़लती ही गई… ग़लती ही गई… यह सब ‘उसका’ किया धरा है… मुझे बचा ले बेटी… मुझे बचा ले…”, माई दलदल से निकल ने के लिए हाथ पैर मारती गई और वह जितना हाथ पैर मारती उतना ही दलदल में धँसती जाती… मैं हाथ में हंसिया उठाए दलदल के पास ही खड़ी रही… माई चीखती चिल्लती दलदल में समा गई..

[irp posts=”4508″ name=”आपके कुल में कोई प्रेत है? कैसे बनते हैं प्रेत, कैसे होगी मुक्ति?”]

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here