माता के अधिकांश स्वरूप सुहागिन की तरह पूजे जाते हैं फिर माता वैष्णो देवी कुमारी कन्यारूप में क्यों पूजी जाती हैं? पढ़ें और फेसबुक की पोस्ट शेयर जरूर कर दें ताकि सभी भक्तों तक पहुंचे.
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त्रिकुट पर्वत पर विराजने वाली माता वैष्णो देवी का धाम मां जगदंबा का जाग्रत पीठ है. माता वैष्णो देवी के भक्त दुनियाभर से आते हैं और माता से मनोकामना पूर्ति का वरदान लेकर जाते हैं. माता वैष्णो देवी के मुख्य भवन पर पहुंचने से पहले एक अर्धकुमारी गुफा भी आती है जहां से भक्तों को रेंगकर पार करना होता है. कहते हैंं माता वैष्णो देवी के भक्तों के लिए यदि हर बार संभव न हो तो भी कम से कम एक बार तो अर्धकुमारी गर्भ गुफा से पार जरूर कर लेना चाहिए.
धूमावती माता और एकाध अन्य माता के स्वरूपों को छोड़ दें तो मां जगदंबा ज्यादातर जगह सुहागिन रूप में ही पूजी जाती हैं. माता वैष्णो देवी में सिंदूर चढ़ता है, सुहाग का आशीर्वाद भी मिलता है परंतु माता कुँआरी रूप में हैं.
माता वैष्णों के भक्तों को यह जानने की इच्छा जरूर होगी कि ऐसा क्यों है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा आती है. वह हम आपको सुनाएंगे. आप सभी माता भक्तों से विनती है कि फेसबुक का हमारा ये पोस्ट शेयर जरूर कर दीजिएगा ताकि माता वैष्णो देवी के ज्यादा से ज्यादा भक्त तक यह जानकारी पहुंचाई जा सके.
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कथा इस प्रकार से है-
त्रेतायुग की बात है. दक्षिण भारत के रामेश्वरम में समुद्र तट पर एक सुंदर गांव था. रत्नाकर पंडित यहीं रहते थे. रत्नाकर शिवजी और मां आदि शक्ति के बड़े भक्त थे. गांव शहर में रत्नाकर का मान तो बहुत था पर कोई संतान न थी.
रत्नाकर की पत्नी हमेशा मां आदिशक्ति से संतान की गुहार लगाती रहती थीं. उन्होंने लगातार कई वर्षों तक मां की पूजा अर्चना की. कई सालों से संतानहीन रत्नाकर की पत्नी की प्रार्थना एक दिन मां ने सुन ली.
वह गर्भवती हुई तो एक रात रत्नाकर के सपने में एक बालिका ने आकर कहा- मैं तुम्हारे घर आ रही हूं पर एक शर्त पर, मैं जो कुछ करना चाहूं, रोकोगे नहीं.
पुजारी और सिद्ध पंडित रत्नाकर को यह आभास हो गया कि मां आदिशक्ति के सत, रज और तम को दिखाने वाले तीन रूप महासरस्वती, महालक्ष्मी और महादुर्गा ने मिलकर ही इस कन्या का रूप लिया है.
नियत समय पर इस दिव्य कन्या का जन्म हुआ. रत्नाकर को यह भी पता चल गया था कि यह कन्या मां आदिशक्ति ने धर्म की रक्षा के लिए ही प्रकट की है. रत्नाकर उसी भाव से कन्या का लालन पालन करने लगे.
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To fir bhaironath aur dhyanu bhagat ki story, Galat hai.
ऐसा नहीं कहा हमने… मां की लीला तो मां ही जानें…यह कथा एक प्रसिद्ध कथा है. जो मैंने अंत में लिखा भी है. भैरवनाथ की बात भी पोस्ट के अंत में है और आप जो प्रसंग कह रहे हैं उसका भी वर्णन आएगा..
Ma ka kripa sadaeba meray Paribar per rahay .jai Mata Dee
ज्ञान वर्धक
Your Comment JAY MATA DI. JAY MAA. SABHI BHAKTO PE KRIPA DRISHTI RAKHNA MATA. JAY HO.