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त्रिकुटा को इस बात से बड़ी प्रसन्नता हुई कि उनका तप सफल है. भगवान ने उन्हें वरण का एक आश्वासन दिया है. अब उन्हें अपने स्वामी की परीक्षा में उतीर्ण होना है.
इस प्रसन्नता के भाव से भरकर त्रिकुटा का उत्साह और बढ़ गया. उन्होंने और कठिन तप करना आरंभ किया. उनके तप का प्रभाव ऐसा था कि उनकी कुटि के आसपास का पूरा क्षेत्र एक अलग प्रकाश से प्रकाशित होता था.
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भगवान श्रीराम ने रावण के साथ युद्धकर उसे हराया. विभीषण को लंका का राजा बनाकर अपनी पत्नी, भाई और समस्त सेना के साथ वह अपने नगर को लौटने लगे.
प्रभु लंका विजय के बाद पुष्पक विमान पर सवार होकर लौट रहे थे. उन्हें त्रिकुटा को दिया अपना वचन भी पूरा करना था. रामेश्वरम के तट पर पहुंचते ही भगवान ने विमान रुकवा दिया.
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सभी कौतूहल में पड़ गए तो प्रभु ने उन्हें कुछ पल की प्रतीक्षा करने को कहा उसके बाद वह अकेले ही चल पड़े. सारी सेना भगवान की आज्ञा के अनुसार वहीं ठहरकर उनकी प्रतीक्षा करने लगी.
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To fir bhaironath aur dhyanu bhagat ki story, Galat hai.
ऐसा नहीं कहा हमने… मां की लीला तो मां ही जानें…यह कथा एक प्रसिद्ध कथा है. जो मैंने अंत में लिखा भी है. भैरवनाथ की बात भी पोस्ट के अंत में है और आप जो प्रसंग कह रहे हैं उसका भी वर्णन आएगा..
Ma ka kripa sadaeba meray Paribar per rahay .jai Mata Dee
ज्ञान वर्धक
Your Comment JAY MATA DI. JAY MAA. SABHI BHAKTO PE KRIPA DRISHTI RAKHNA MATA. JAY HO.