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ब्रह्माजी के कुल में एक बड़े ही धर्मात्मा और दानी राजा का जन्म हुआ. उनका नाम वसु था. वसु जहां से भी सम्भव हो ज्ञान इकट्ठा करते रहते थे इसलिये अपने ज्ञान और जानकारी के लिए भी बहुत प्रसिद्ध थे.

एक दिन वसु को इच्छा हुई कि चलें ब्रह्माजी से मिल आया जाये. वे ब्रह्मलोक की और चल पड़े. कुछ समय चलने के बाद उन्हें रास्ते में चित्ररथ नामक विद्याधर मिला.

वसु ने चित्ररथ से पूछा कि ब्रह्मा जी से मिलने का उचित समय क्या होगा? चित्रधर बोला- अभी तो ब्रह्माजी के भवन में देवों की सभा चल रही है. ब्रह्माजी उसमें व्यस्त हैं, बाकी आप जो उचित समझें.

वसु ब्रह्मलोक तक पहुंच चुके थे. चित्ररथ की बात सुन उन्होंने ब्रह्म भवन के बाहर ही प्रतीक्षा करना उचित समझा. इतने में रैभ्य मुनि आ गये. उन्हें देख वसु प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें ज्ञानचर्चा के एक साथी मिल गए.

रैभ्य ने बताया कि वह वृह्स्पति के पास आये हैं. इतने में ब्रह्माजी की सभा समाप्त हो गयी. वसु को वहीं वृहस्पति मिल गए. बातचीत करते सब वृहस्पति के ही घर आ गये.

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