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मार्कंडेयजी बोले- भाई मैं तो नहीं जानता पर मेरा एक मित्र है जो मुझसे बड़ा है. उसका नाम है- नाड़ीजंघ. एक बगुला है वह. उससे पूछकर देखते हैं. मार्कंडेय और इंद्रद्युमन दोनों नाड़ीजंघ बगुले के पास पहुंचे.

नाड़ीजंघ नामक यह बक तो बहुत बड़ा बक्की निकला उसने पहले तो अपनी एक लंबी कथा सुनायी फिर बोला कि मुझे भी नहीं पता. आप प्रकारकर्मा उलूक के पास जाओ. वह मुझसे भी बड़ा है. दूर-दूर तक की खबर रखता है.

सब प्रकारकर्मा उलूक के पास पहुंचे. बहुत बुढा चुके उस उलूक ने कहा- मेरी याददाश्त कमजोर हो चुकी है. विश्वास से कुछ नहीं कह सकता पर यह बात यकीन से कह सकता हूं कि अगर ऐसा कोई राजा हुआ है तो चिरायु गीधराज को पता होगी.

उलूक की बात सुनकर सब चिरायु गीध के पास पहुंचे. उसने भी नकार दिया कि इस नाम का कोई रजा उसकी जानकारी में था. हां मंथर नाम के कछुए को पुराने समय का सब विवरण याद है. आप उससे पूछें.

अब इंद्रद्युमन और मार्कंडे मुनि के साथ साथ नाड़ीजंघ बगुला, प्रकारकर्मा उलूक, चिरायु गीध सब मानसरोवर में रहने वाले कछुये मंथर के पास पहुंचे. सवाल पूछा गया. कछुए ने कहा- आप लोगों में से ये पांचवें राजा इंद्रद्युन ही तो हैं.

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