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भगवान शिव बोले– महादेवि! यह काशी का परम पवित्र क्षेत्र है. यह स्थान स्वयं ही सनातन ब्रह्म स्वरूप है. इसलिए यह भूमि प्रणाम के योग्य है. इसलिए मैंने ऐसा कहा. मैं यहां सप्ताह-यज्ञ (भागवत-सप्ताह-यज्ञ) करूंगा.
भगवान् शंकर ने उस यज्ञ-स्थल की रक्षा के लिए चंडीश, गणेश, नंदी इत्यादि को तैनात किया और स्वयं ध्यान में स्थित होकर माता पार्वती से सात दिन तक भागवती कथा कहते रहे. माता को नींद आ गई.
आठवें दिन पार्वती को सोते देखकर भगवान शंकर ने पूछा कि कितनी कथा सुनी? पार्वतीजी ने उत्तर दिया, मैंने अमृत-मंथन तक का विष्णु चरित्र सुना है. वहीं वृक्ष के कोटर में एक तोता यह सब सुन रहा था.
भागवत कथा के प्रभाव से वह शुक महर्षियों द्वारा पूजनीय शुकदेव हुए. वह इस अमृत-कथा के सुनने के कारण अमर हो गए. बोपदेव! तुमने भी इस दुर्लभ भागवत-माहात्म्य को प्राप्त किया है .
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