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उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया. उसने मार्ग में बताया- मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना.
उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई. वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई. एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा-मैं काम से बाहर जा रही हूं. तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना.
उसे यह बात ध्यान न रही और उसने गर्म दूध पिला दिया जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया. यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई. तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए.
तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया. इतना धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा- तेरा भाई तो बड़ा धनवान है. तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए.
सर्प ने यह वचन सुना तो और सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं. यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- सोने की चीजों को झाड़ने की झाड़ू भी तो सोने की ही होनी चाहिए. तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी.
सर्प ने छोटी बहू को हीरे-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था. उस हार की प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहां मेरे पास आना चाहिए.
राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो. मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि छोटी बहू का हार महारानी को चाहिए. वह उससे लेकर मुझे दे दो. सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया.
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