दुर्गा सप्तशती

नवरात्रि का व्रत भगवान श्रीराम ने भी रखा था. नवरात्रि व्रत है ही इतना मंगलकारी. कहते हैं सच्ची श्रद्धा के साथ रखा गया नवरात्रि का व्रत सभी अमंगलों को हरने वाला है.  मां जगदंबा की अनुकंपा से नवरात्रि का व्रत रखने से बड़े संकट दूर होते हैं. आखिर भगवान श्रीराम ने किस मनोकामना की पूर्ति के लिए रखा था नवरात्रि का व्रत.


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मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी नवरात्रि का व्रत रखा था. उसका बड़ा ही मनोरम वर्णन श्री रामचरित मानस में है. देवीभागवत महापुराण में भी इसको विस्तार से बताया गया है. वेदव्यास जनमेजय को भगवान राम के नवरात्र का व्रत का हेतु बताते हैं. इसी प्रसंग में नवरात्र का व्रत की यह रामकथा उभरती है.

जनमेजय के जवाब में व्यास जी ने कहा-”सीता हरण से दुःखी श्रीराम लक्ष्मण से बोले, कितने बुरे दिन हैं. पिताजी सुरधाम सिधारे, अपनी नगरी छूटी, वनवासी बने, सीता हरी गई, पता नहीं आगे क्या हो, पर इतना तय है कि जानकी के बिना अयोध्या न लौट सकूंगा.

लक्ष्मण, तुम भी सब सुख छोड़ कर मेरे साथ निकल पड़े, अब इतना कष्ट भोग रहे हो. रावण ने अधिक परेशान किया तो जानकी जान दे देगी, पर उसकी बात न मानेगी. जानकी ने जान दी तो मैं भी जिंदा न रहूंगा.

लक्ष्मण बोले. भैया आप चिंता न करें,बहुत से वानर सीता माता की खोज में गये हैं. जल्द ही उनका पता चल जायेगा. मैं अकेले ही सारे देवताओं और दानवों को जीतने की ताकत रखता हूं फिर भी आवश्यकता पड़ी तो सेना सहित भरत और शत्रुघ्न को भी बुला लेंगे, आप कतई शोक न करें.

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भगवान राम और लक्ष्मण यह सब बातें कर ही रहे थे कि नारद आकाश से विशाल वीणा बजाते और झूम झूम कर गाते हुये वहीं उतर आए. नारद्जी ने रामचंद्र से कहा, ‘राघव! तुम साधारण लोगों की तरह इतने दुःखी क्यों हो?

देवलोक में मुझे पता चला कि रावण ने सीता को हर ली. उसने सांप को को माला समझकर अपने गले में डाल लेने वाले किसी व्यक्ति की तरह यह काम किया है. निराश मत हो, उसके वंश का नाश अब निश्चित है. यह कैसे होगा मैं बताता हूं.

इसी आश्विन महीने में नवरात्र व्रत करो. नवरात्र में उपवास, भगवती की पूजा, उनके नाम का जप और होम हर तरह की सिद्धियां देने वाला है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र तक यह व्रत कर चुके हैं. कठिन परिस्थिति में पड़ने पर तो यह व्रत जरूर करना चाहिए.

विश्वमित्र, भृगु, वसिष्ठ और कश्यप ने भी यह नवरात्र व्रत किया था, वे सब मां भगवती की कृपा से अपने ऊपर आई विपत्ति को टालने में सफल रहे. इसलिये आप रावण वध के लिये इस व्रत को जरूर करें.

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भगवान राम ने कहा, मुनिवर मैं यह नवरात्र व्रत करूंगा पर पहले यह बताने की कृपा करें कि जिनका व्रत मैं करूंगा वे कौन देवी हैं, उनका क्या प्रभाव है, वे कहां से अवतरित हुई हैं?’

श्री राम के सवाल पर नारदजी ने मां भगवती के बारे में कहा, उनकी महिमा अनंत है जिसको कह सकना कठिन हैं. उनके अनगिनत नाम हैं वह आदि शक्ति देवी हैं जो हर जगह हमेशा विराजमान रहती हैं और यही देवी तीनों लोकों की सृष्टि करती हैं. ब्रह्मा जी और वेद इन्हीं से प्रकट हुये हैं.

भगवान राम ने कहा,’ मैं पूरी लगन से आदि शक्ति का यह व्रत करना चाहता हूं. व्रत के विधि विधान बताइये. इस पर नारद जी बोले, एक ऊँचा आसन रखकर उस पर भगवती जगदंबा को स्थापित कर के नौ रातों तक उपवास करते हुए विधि विधान से उनकी पूजा करनी होगी. मैं इस कार्य में आचार्य का काम करूंगा.

आश्विन मास आ गया था. भगवान राम ने मुनिवर नारदजी के कहे अनुसार किष्किंधा पर्वत पर एक ऊंचा आसन बनवा कर भगवती जगदंबा की मूर्ति रखी. नारद जी के बताये अनुसार उपवास करते हुए भगवान राम के साथ लक्ष्मण भी होम, पूजा, पाठ जप में लगातार लगे रहे.

अष्टमी तिथि आयी, भगवान ने मां जगदंबा को 108 नील कमल चढाने की व्यवस्था कर रखी थी. वे एक एक कर फूल चढाते जाते थे. पर 107 फूलों के बाद आखिरी नील कमल गायब था. रावण ने अपनी माया से उसे गायब कर दिया था.

अब रात हो गयी थी, इस दुर्लभ नील कमल की व्यवस्था असंभव थी. ऐसे में कहीं पूजा अधूरी न रह जाये. भगवान श्रीराम बड़ी चिंता में पड़े, मां जगदंबा रूठ न जायें. अचानक उन्हें ख्याल आया कि उन्हें कमलनयन भी तो कहते हैं.

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एक नीलकमल की जगह उन्होंने अपनी एक आंख निकाल कर चढाने की का फैसला लिया. भगवान राम ने तत्काल अपने तरकश से एक तीर निकाला और अपनी आँख निकालने ही वाले थे कि उस किष्किंधा पर्वत पर आधी रात में उजाला छा गया, भगवती प्रकट हुईं.

सिंह पर बैठी हुई भगवती ने श्रीराम और लक्ष्मण को दर्शन दिए. देवी ने कहा- श्रीराम! मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं. मनचाहा वर मुझसे मांग लो. मनु के पावन वंश में विष्णु के अंश के रूप में तुम्हारा अवतार देवताओं के प्रार्थना पर रावणवध के लिए ही हुआ है.

तुम्हारे साथ के ये सभी वानर देवताओं के ही अंश हैं, इन सब में मेरी शक्ति भी है. लक्ष्मण शेषनाग का अवतार है, यह मेघनाद को मार डालेगा. अब इस व्रत को पूरा करने के बाद पापी रावण को मारकर सुखपूर्वक राज्य भोगो.

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ग्यारह हजार वर्षों तक धरती पर तुम्हारा राज्य रहेगा जिसके बाद तुम अपने परमधाम को सिधारोगे.’ व्यास जी ने कहा, यह कहकर भगवती अंतर्धान हो गईं. भगवान राम बहुत प्रसन्न हुये. नवरात्र-व्रत समाप्त करके दशमी के दिन भगवान राम लंका को चले पर उससे पहले विजयादशमी की पूजा भी की.

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