नीयत को साफ रखिए. नीयत में खोट आने के साथ आपका पूरा व्यक्तित्व बदल जाता है.  आप जैसा सोच रहे होते हैं वैसी ही तरंगे आपके शरीर से निकलती हैं. चतुर से चतुर व्यक्ति भी नीयत से उभरे भाव को छुपा नहीं सकता.

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नीयत अच्छी होनी चाहिए. अपना भला सोचने में कोई बुराई नहीं. लेकिन किसी का अहित करके भी अपना भला देखने की नीयत से बुरी कोई चीज नहीं. लाख कोशिश कर लें, अपने मन के भाव को आप छुपा नहीं सकते. नीयत साफ हो तो बड़ा सम्मान मिलता है. एक छोटी सी लेकिन प्रेरक कथा है जो समझाएगी कि नीयत अच्छी हो तो बढ़ जता है मान.

एक शहर में दो व्यापारी आए. एक घी का कारोबार करता था, दूसरा चमड़े का. संयोग से दोनों रात बिताने के लिए शरण मांगने एक ही दरवाजे पर जा पहुंचे.

मकान मालिक ने दोनों की आवभगत की, शरण दी. भोजन तो एक जैसा कराया पर सोने का इंतजाम अलग-अलग. घी के व्यापारी को घर के भीतर सुलाया जबकि चमड़े वाले को बाहर बरामदे में.

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दूसरे दिन वे दोनों व्यापारी माल खरीदने गए. दिनभर अपना काम किया और शाम को वापस अपने आसरे पर लौटकर आए. गृहस्वामी ने दोनों को आदर से भोजन कराया लेकिन भोजन के उपरांत उसके व्यवहार में पहले से अंतर दिखा.

दोनों जब सोने चले तो गृहस्वामी ने शयन की व्यवस्था बदल दी. पहली रात चमड़े का व्यापारी बाहर सोया था. उसकी जगह आज घी के व्यापारी को सोने को कह दिया गया. घी व्यापारी को कहा गया कि आज आप बाहर सोएंगे जहां कल चमड़े का व्यापारी सोया था.

इस पर दोनों व्यापारी बेहद चकित हुए. दोनों ने जब इसका कारण पूछा.

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गृहस्वामी ने कहा- मैं अतिथि की भावना के अनुसार उसके साथ व्यवहार करता हूं. माल खरीदने जाते समय आप दोनों चाहते थे कि माल सस्ता मिले. घी तभी सस्ता मिल सकता है जब देश में खुशहाली हो. चमड़ा तभी सस्ता मिल सकता है जब अधिक पशुओं की हत्या हो. इसलिए मैंने घी के व्यापारी को भीतर सुलाया और चमड़े के व्यापारी को बाहर.

आपने माल खरीद लिया तो अब उसकी विक्री की नीति सोचने लगे.

लौटकर आने पर आप दोनों की मनःस्थिति में अंतर हो गया. आप दोनों चाहते थे कि आपका माल महंगा बिके तो अधिक मुनाफा हो. घी-दूध की कमी होने से ही घी महंगा हो सकता है. देश में दूध-दही और घी के अभाव की कामना तो दुर्भावना है.

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वहीं चमड़ा तभी महंगा हो सकता है जब पशुहत्या कम हो. यह अहिंसक भावना अच्छी है. इसलिए लौटते समय आज आपकी स्थिति के अनुरूप ही स्थान में परिवर्तन करके सुलाया गया.’

दोनों व्यापारी इस विश्लेषण से दंग रह गए.

गृहस्वामी ने आगे कहा- ठीक है कि आप लाभ के लिए ही सब कुछ कर रहे हैं पर मनुष्यता को दरकिनार करके व्यापार करने का कोई अर्थ नहीं.

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वैसे तो बात बेहद सरल सी है पर इसके पीछे का मनोविज्ञान कितना सही है. कहा गया है कि यदि आप नीयत अच्छी है तो बरकत अच्छी होगी. जाकि रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन्ह देखि तैसी.

व्यापार हो या व्यक्तिगत आचरण नीयत सही होनी चाहिए.

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