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भगवान परशुराम की कथा साहस, कौशल, अटूट पितृभक्ति और अनूठे आख्यानों से भरी है. अपनी मां की हत्या कर देने और 21 बार धरती से हैहय क्षत्रियों का नाश करने वाले परशुराम शिव के अनन्य भक्त और श्रीविष्णु के छठे अवतार हैं.

अश्वत्थामा, हनुमान और विभीषण की भांति परशुराम भी चिरंजीवी हैं.परशुराम पर अगले कई दिनों तक हम एक शृंखला चलाएंगे और कई ऐसी कथाएं आपके समक्ष लाने का प्रयास करेंगे जो काफी हद तक अनकही हैं.

भृगु के वंश में एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया राम. राम ने भगवान शिव की घोर तपस्या की. भोले बाबा ने प्रसन्न होकर एक दिव्य परशु यानी फरसा प्रदान किया.

जैसे नारदजी वीणा के साथ ही चलते हैं उसी तरह राम भी अपने साथ सदैव इस फरसे को रखते थे इसी कारण वह परशुराम कहे जाने लगे. वास्तव में ब्राह्मण कुल में जन्मे परशुराम का आचरण क्षत्रिय जैसा होने के पीछे उनके दादा का ही एक शाप था.

कन्नौज के राजा गाधि की एक परमरूपवती पुत्री थीं सत्यवती. भृगु पुत्र ऋचीक सत्यवती के रूप पर मुग्ध हो गए और उन्होंने गाधि से उनकी पुत्री मांग ली. भृगु के पुत्र का अनादर करने का सामर्थ्य गाधि में न था.

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