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पुत्रदा एकादशी की विधिः
- एकादशी के पूर्व की रात से ही व्रत का विधान आरंभ हो जाता है.
- दशमी की रात्रि को सात्विक भोजन लें.
- दशमी की रात्रि एवं एकादशी को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें. पूर्ण ब्रह्मचर्य अर्थात् मन, वचन और कर्म तीनों से ब्रह्मचर्य पालन हो.
- एकादशी की सुबह नित्यक्रियाओं के बाद साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर या मंदिर में (लड्डू गोपाल हों तो और अच्छा) के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें.
- भगवान से प्रार्थना करें- हे प्रभु आप मुझे इस व्रत की अनमुति दें. यदि कोई भूल-चूक हो जाए तो अपना अबोध बालक समझकर क्षमा करेंगे.
- इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें. आप स्वयं भी पूजन कर सकते हैं- प्रभु शरणम् एप्पस के चालीसा मंत्र सेक्शन में दैनिक पूजन विधि है. उसे पढ़कर आपको सहायता मिल जाएगी.यदि स्वयं पूजन करने में असमर्थ हों तो किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं.
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- भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं.
- स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती अपने ऊपर और परिवार के सभी सदस्यों पर छिड़के. फिर उस चरणामृत को पूजन के उपरांत पीना भी चाहिए.
- भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें. इन्हें अर्पित करने के मंत्र बहुत सरल हैं- (देखें प्रभु शरणम् एप्पस, मंत्र सेक्शन में दैनिक पूजन विधि)
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें एवं व्रत की कथा सुनें.
- संतान गोपाल मंत्र का अनुष्ठान किया है तो उसका जप करते रहें.
- रात्रि में बिस्तर पर न सोएं. कंबल आदि बिछाकर भूमि पर शयन करें.
- उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. एक समय फलाहारी ग्रहण किया जा सकता है.
- द्वादशी को वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें. फिर भोजन ग्रहण करें. शहरों में या बाहर रहने वाले लोगों के लिए ब्राह्मण भोजन की समस्या आती है. उपलब्ध न हुए तो उनके निमित्त कोई राशि सोच लें उससे बाद में भी भोजन करा दें.
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