अब बायगीरों  ने अपने जस और मन्त्रों के द्वारा कार्य को प्रारम्भ किया, चार चीजों का ये बायगीर विशेष इस्तेमाल करते हैं, पहला .जस…गाने,लोक गीत सर्पों से सम्बंधित दूसरा .मन्त्र, तीसरा ….वाचा (वचन), आन……..सर्प वचन,आन का बहुत पक्का होता है,

इसलिए जस गाने के दौरान उस पीड़ित व्यक्ति के कान में ऐसी ऐसी बातें कहीं जाती हैं, जिससे उस सर्प को खेलना पड़े और फिर उन्हीं वाचों का उपयोग ,उसकी जान बचाने हेतु किया जाता है, चौथा ….. पीतल की थाली….इसको एक चौड़े घड़े के मुंह के ऊपर उल्टा करके रख दिया जाता है, फिर एक छोटे बैंडनुमा डंडे से प्रशक्षित भगत या उनके शिष्यों द्वारा थाली को, एक हाथ से घुमाते हुए और दुसरे हाथ से डंडे को विशेष धुन पर बजाया जाता है, एक व्यक्ति ढोलक से इसकी ताल मिलाता है।

सच कहता हूँ मित्रों, इस धुन का कोई सानी नहीं, आपके DJ वगेरह सब फेल,

यदि ऐसा नहीं होता, तो सर्प बीन और इन जैसी धुनों पर नाचते नहीं।

खैर, धीरे धीरे समय अपनी गति से बढ़ता जा रहा था, जस गाने के दौरान बायगीर ऐसे ऐसे वचन,आन उस पीड़ित के कान में कहते,

सर्प भी एक बार को विवश हो जाता खेलने के लिए, फूलन सिंह के ऊपर सिर्फ चादर पड़ी थी, इसलिए वो ऐसे झूमता, जैसे किसी बार में बैठा हो, वहां खड़े सभी लोग जैसे मंत्रमुग्ध, सम्मोहित हो चुके थे उस संगीत के आगे, धीरे धीरे ६-७ घंटे बाद उन बायगीरों की मेहनत रंग लायी, और सर्प महाराज गद्दी पर आ गए।

सभी बायगीर भगतों ने सर्प महाराज को प्रणाम किया, तो उन्होंने भी प्रणाम किया। तब भगत लोगों ने बात आगे बढ़ाई और उनका परिचय पूछा, उन्होंने अपना सही सही परिचय दिया, तो बायगीरों ने फूलनसिंह को काटने का कारण पूछा, तो सर्प महाराज ने कहा, ‘यह चोर है, अपने आप को गुंडा समझता है,बदमाशी, लूट खसोट करता है। बताओ यह बात सही है या नहीं ?

इतना सुनते ही सभी लोग असमंजस में पड़ गए।उनकी तो सांप छछूंदर जैसी हालत हो गयी। अगर वे इन बातों के लिए हाँ करते हैं, तो सुबह उनकी शामत आ जाएगी।और ना करते हैं तो, सर्प महाराज बिगड़ जायेंगे।

बायगीर इतना सोच ही रहे थे कि, सर्प महाराज ने कड़ककर दुबारा पूछा, बताओ उत्तर क्यों नहीं देते हो। उन सब में सबसे समझदार कालिया भगत था, वो बात को भांप गया और तुरंत मोर्चा संभाल लिया।

वो बोला, “ठीक है महाराज मान ली आपकी बात, लेकिन ये बात आपको साबित करनी पड़ेगी। इतना सुनते ही फूलन सिंह की चोर मंडली की हवाइयां उड़ने लगी। लेकिन वो सुनने के सिवाय कर ही क्या सकते थे।

अब सर्प महाराज बोले, “ठीक है मैं साबित कर दूंगा।

इसके घर के पीछे, एक कमरा है, जिसमें लकड़ी और कूड़ा कबाड़ा भरा पड़ा है। उसमें मेरे मित्र के दो बैल बंधे हैं। उनको यह रात में चुराकर लाया है। मैंने अपने मित्र के वास्ते, इसके साथ आकर इसके घर में ही काटा है।

कहो, मैंने मित्रता का फ़र्ज़ निभाया है अथवा नहीं” इतने सुनते ही सभी लोग भौचक्के रह गए।

बायगीर तो बेचारे दुबारा से बगलें झाँकने लगे, उन्होंने सोचा, “यदि हाँ कहते हैं, तो इसका अर्थ हुआ आपने सही काटा है। और ना कहते हैं, महाराज जी पूछेंगे तो मित्रता का फ़र्ज़ गलत कैसे, जो नितांत अनुचित है।

शेष अगले पेज पर, नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें-

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here