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भीलनी के लिए यह नयी बात थी. उसने कभी पूजा-पाठ न देखी थी. भील के रोज पूजा करने से ऐसे संस्कार जगह की कुछ दिन बाद वह खुद तो पूजा न करती पर भील की सहायता करने लगी.

कुछ दिन और बीते तो भीलनी पूजा में पर्याप्त रुचि लेने लगी. एक दिन भील पूजा पर बैठा तो देखा कि सारी पूजन सामग्री तो मौजूद है पर लगता है वह चिता भस्म लाना तो भूल ही गया.

वह भागता हुआ जंगल के बाहर स्थित श्मशान गया. आश्चर्य आज तो कोई चिता जल ही नहीं रही थी. पिछली रात जली चिता का भी कोई नामो निशान न था जबकि उसे लगता था कि रात को मैं यहां से भस्म ले गया हूं.

भील भागता हुआ उलटे पांव घर पहुंचा. भस्म की डिबिया उलटायी पलटाई पर चिता भस्म तनिक भी न थी. चिंता और निराशा में उसने अपनी भीलनी को पुकारा जिसने सारी तैयारी की थी.

पत्नी ने कहा- आज बिना भस्म के ही पूज कर लें, शेष तो सब तैयार है. पर भील ने कहा नहीं राजा ने कहा था कि चिता भस्म बहुत ज़रूरी है. वह मिली नहीं. क्या करूं! भील चिंतित हो बैठ गया.

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