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लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ॥
उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू ॥3॥

भावार्थ:- बहुरूपिए भी यदि साधु का वेष बना लें तो संसार उनके वेष के प्रभाव से उनकी वंदना करता है, परन्तु एक न एक दिन उनकी प्रकृति सामने आ ही जाती है. उनका कपट सदा के लिए छिप सकता जैसे कालनेमि, रावण और राहु का सत्य सामने आ ही गया.

किएहुँ कुबेषु साधु सनमानू। जिमि जग जामवंत हनुमानू॥
हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब काहू ॥4॥

भावार्थ:- साधु यदि असुंदर वेष बना लें तब भी उनके सम्मान में कमी नहीं होती. जैसे जाम्बवान्‌जी और हनुमान्‌जी भालू और बानर के वेष में भी वंदनीय औऱ पूजनीय हैं. कुसंग से हानि और सत्संग से लाभ होता है, यह बात शास्त्रों में कही गई और सभी इसे समझ सकते हैं.

गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा॥
साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं ॥5॥

भावार्थ:- धूल ऊपर की ओर जाने वाले पवन के संपर्क में आती है तो आकाश पर चढ़ जाती है और जब नीचे की ओर गति करने वाले जल के संपर्क में आती है तो कीचड़ में मिल जाती है.

साधु-सज्जनों के घर में रहने वाले तोता-मैना अच्छी संगति के कारण राम-राम सुमिरते हैं और असाधु के घर के तोता-मैना गिन-गिनकर गालियाँ देते हैं. जैसा परिवेश होगा, वैसी ही प्रवृति हो जाएगी.

धूम कुसंगति कारिख होई। लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई॥
सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता॥6॥

भावार्थ:- धुआँ कुसंगति करता है तो कालिख कहलाता है पर जब धुआँ अच्छी संगति में आता है तो सुंदर स्याही बनकर पुराण लिखने के काम आता है. वही धुआँ जल, अग्नि और पवन के संग से बादल होकर जगत को जीवन देने वाला बन जाता है.

दोहा :

ग्रह भेजष जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग ॥7(क)॥

भावार्थ:- ग्रह, औषधि, जल, वायु और वस्त्र- ये सब भी कुसंग और सुसंग पाकर संसार में बुरे और भले पदार्थ हो जाते हैं. इसका अंतर चतुर एवं विचारशील व्यक्ति ही समझ पाते हैं.

सम प्रकास तम पाख दुहुँ नाम भेद बिधि कीन्ह।
ससि सोषक पोषक समुझि जग जस अपजस दीन्ह ॥7(ख)॥

भावार्थ:- महीने के दोनों पखवाड़ों में उजाला और अँधेरा समान ही रहता है, परन्तु विधाता ने इनके नामों में भेद कर दिया है. एक का नाम शुक्ल और दूसरे का नाम कृष्ण रख दिया.

एक को चन्द्रमा को बढ़ाने वाला और दूसरे को चंद्रमा को घटाने वाला समझकर जगत ने एक को सुयश और दूसरे को अपयश दे दिया.

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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