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इस प्रकार जब तुम्हारे उत्सव की चर्चा होने लगेगी तो उस उत्सव का विस्तार होगा तब निश्चित ही उद्धवजी का दर्शन तुम्हें मिलेगा. तब रानियां व्रजनाभ और परीक्षितजी को लेकर व्रज में आईं.
यमुनाजी के बताए अनुसार गोवर्धन के निकट कुसुम सरोवर पर उत्सव श्रीकृष्ण कीर्तन आरंभ कर दिया. वहां रहने वाले सभी भक्तजन एकाग्र हो गए. उनकी दृष्टि कहीं और न जाती थी. तभी सबके देखते देखते वहां फैले हुए लताओं के समूह से प्रकट होकर उद्धवजी सबके सामने आये.
शरीर श्यामवर्ण, उसपर पीताम्बर शोभा पा रहा था. गले में वनमाला धारण किये हुए और मुख से बारबार गोपीवल्लभ श्रीकृष्ण की मधुर लीलाओं का गान कर रहे थे. उद्धव जी के आगमन से उस कीर्तन की शोभा बहुत बढ़ गई.
उद्धवजी ने भगवान की रानियों को प्रभु की विरह वेदना से निकलने का मार्ग बताया. उन्होंने व्रजनाभ और परीक्षितजी को दिव्य वृंदावन और श्रीकृष्ण के उस स्थान से प्रेम के बारे बताया. तो रानियों के मन की वेदना मिटी और भजन में जुट गईं.
संकलनः संजय तनेजा
यह भक्ति कथा हमें गुड़गांव, हरियाणा से संजय तनेजाजी ने भेजी. संजयजी स्वरोजगार करते हैं और श्रीराधेकृष्ण के अनन्य भक्त हैं.
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