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प्रभु ने हनुमानजी से कहा- आप हमेशा मेरे संकटमोचक रहे हैं. मेरे सभी प्रियजनों को कोई न कोई पद मिला, पर आप रह गए. आपको जो पद प्रिय हो वह कहिए, मैं आपको वह देना चाहता हूं.

हनुमानजी ने कहा- आपकी असीम अनुकंपा मुझे मिलती रहती है, मुझे इसके अलावा और किसी चीज की आवश्यकता ही नहीं.

परंतु भगवान बार-बार हनुमानजी से कोई पद मांगने को कहते रहे. हनुमानजी ने कहा- प्रभु आपने सबको एक-एक पद दिया है. मेरा काम एक पद से नहीं चलेगा. क्या आप मुझे दो पद दे सकते हैं?

प्रभु ने कहा- हनुमानजी आप मांगिए तो सही. सर्वस्व आपका है.

हनुमानजी ने कहा- प्रभु पद पाने से मन में मोह और मद आ जाता है. ऐसे पद का क्या लाभ जिससे अहंकार घेर ले.

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