कलंक चतुर्थी को चंद्रदर्शन के कारण श्रीकृष्ण पर लगा था स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप. स्यमंतक मणि की चोरी और दोषमुक्ति की यह कथा सुनने से कलंक के चंद्रमा के दर्शन दोष से होती है मुक्ति

 

 

 

 

 

 

 

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आप जो कथा पढ़ने वाले हैं उसे सुनने से कलंक चतुर्थी के चंद्रमा के दर्शन के दोष से मुक्ति मिलती है. भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की गणेश चतुर्थी को चंद्रमा के दर्शन से चोरी को झूठा आरोप लगता है. इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण पर भी स्यमंतक मणि की चोरी का झूठा आरोप लगा था. नारदजी के बताने पर भगवान ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया और स्यमंतक चोरी के आरोप से मुक्ति मिली थी. पर इस दिन चंद्रमा के दर्शन से क्यों लगता है चोरी का आरोप. यह कथा भी बड़ी रोचक है. इसे नीचे लिंक से पढ़ सकते हैं.

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सूर्यभक्त सत्राजित द्वारका के बड़े जमींदार थे. सूर्यदेव ने उन्हें स्यमंतक मणि भेंट की थी. उस मणि में सूर्य का तेज था और वह प्रतिदिन आठ भार सोना भी देती थी. इस धन से सत्राजित अभिमानी हो गए थे.

वह श्रीकृष्ण से द्वेष रखते थे और प्रभु की बुराई का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. सत्राजित की अत्यंत रूपवती और शस्त्रविद्याओं में कुशल बेटी सत्यभामा बचपन से श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी जो देवी लक्ष्मी का अंशरूप थीं.

सत्राजित ने श्रीकृष्ण के मित्र सात्यकि के बेटे से सत्यभामा के विवाह का प्रस्ताव दिया. सात्यकि जानते थे कि सत्यभामा श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं. इसलिए सात्यकि ने प्रस्ताव ठुकरा दिया. इसके बाद सत्राजित का श्रीकृष्ण के प्रति बैर और बढ़ गया.

लेकिन श्रीकृष्ण कोई बैर नहीं रखते थे. वह सत्राजित और उनके वैभव की प्रशंसा किया करते थे. इससे सत्राजित को लगता था कि श्रीकृष्ण की नजर उसकी स्यंतक मणि पर है.

एकबार सत्राजित के भाई प्रसेनजित स्यंतक मणि को धारणकर शिकार खेलने गए. वहां एक शेर उन्हें मारकर खा गया लेकिन मणि उसके गले में ही फंस गई. रीक्षराज जामवंत ने सिंह को मारकर मणि छीन ली और अपने पुत्र को दे दिया.

प्रसेन और मणि के गायब होने से सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर स्यमंतक चोरी का आरोप लगा दिया. चोरी का कलंक लगने से क्षुब्ध श्रीकृष्ण कुछ बहादुर लोगों के साथ प्रसेन को खोजने निकले.

एक गुफा से निकलती चमक को देखकर उन्होंने साथियों से गुफा के बाहर प्रतीक्षा करने को कहा और खुद अंदर चले गए. गुफा में जामवंत से उनका युद्ध आरंभ हुआ. जामवंत ब्रह्मा के पुत्र थे और लंका विजय में उन्होंने श्रीराम का साथ दिया था.

जामवंत के साथ श्रीकृष्ण का युद्ध 22 दिनों तक चला. जामवंत को आशीर्वाद था कि श्रीकृष्ण के अलावा कोई और उन्हें द्वंद्व में नहीं हरा सकता. उन्हें समझ में आ गया कि स्वयं प्रभु के साथ वह युद्ध कर रहे हैं तो पैरों में गिर गए.

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