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मत्सरासुर को सूचना हुई कि सभी देवता कैलाश पर जुटे हैं. उसने सोचा कि शायद शिवजी की सहायता से देवता उससे युद्ध की तैयारी कर रहे हैं.

त्रिलोक विजय करने के घमंड में चूर मत्सरासुर ने कैलास पर ही आक्रमण की योजना बना ली. मत्सरासुर ने सेना के साथ भगवान शिव के कैलास लोक पर आक्रमण कर दिया. शिवजी ने स्वयं उसे अभय होने का वरदान दिया था इसलिए उनके समक्ष अपना ही वरदान सामने आ जाता.

मत्सरासुर और शिवजी में घोर युद्ध हुआ परन्तु जैसे ही मत्सरासुर पराजित होने लगा शिवजी की शक्ति विभक्त होकर मत्सरासुर का साथ देने लगती. ऐसा उनके ही वरदान के कारण हो रहा था.

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शिवजी मत्सरासुर से समक्ष न टिक सके और उन्हें भी दैत्यराज ने अपने पाश में बांध लिया. अब दुखी देवताओं के पास असुरराज के विनाश का कोई मार्ग ही नहीं नजर आ रहा था. वे तो जिनके आसरे थे स्वयं वही भगवान विवश बंधे थे. शिवजी तो इस लीला का आनंद ले रहे थे क्योंकि उन्हें भान था कि इस लीला से देवताओं को एक और परमदेव की शक्तियों का स्मरण होगा.

शिवजी ने अपनी लीला दिखाई. उनकी प्रेरणा से उसी समय भगवान् दत्तात्रेय वहां पहुंच गए. उन्हें देखकर देवता क्लांत मन से अपना सारा दुख सुनाने लगे.

 

देवताओं को कहा- भगवन शिवजी अपने ही वरदान के आगे विवश हैं. उनकी शक्ति स्वतः मत्सरासुर की सहायता कर रही है. ऐसे में हमारी शक्तियां तो उनके आगे धराशाई हो जा रही हैं. मत्सरासुर को तो हमसे युद्ध ही नहीं करना पड़ रहा. शिवजी की शक्तियां युद्ध कर रही हैं. मत्सरासुर तो हमारे साथ जैसे खेल कर रहा है. इंद्र के वज्र और यम के दंड को तो वह फूंक मारकर उड़ा देता है. पवन की गदा के वह अपने शरीर के अंगों को खुजाता है. ऐसा अपमान देवताओं का तो पहले कभी न हुआ. आप ही कोई मार्ग बताएं.

भगवान दत्तात्रेय ने देवताओं की सारी परेशानी सुनकर कहा- जहां शिव की शक्ति हो वहां आपसब का कोई वश चलने वाला नहीं है. नीति कहती है कि युद्ध का मार्ग और अस्त्र-शस्त्र बदलना चाहिए. जब देवाधिदेव महादेव अपने वरदान में बंध गए हैं तो स्थिति विकट है. इससे आपकी रक्षा मात्र श्रीमहागणपति की शक्ति कर सकती है. आप सबको श्रीमहागणपति को प्रसन्न करके युद्ध के लिए मनाना होगा. शिव की शक्तियों को शिवजी की आज्ञा से ही संकटकाल में अप्रभावी बना देने की शक्ति उनमें ही है. उनके अतिरिक्त कोई अन्य यह कार्य नहीं कर सकता.

देवताओं को जैसे कोई भूली बात स्मरण हो आई.

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