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विदग्ध ने पूछा- फिर दो देव कौन से हैं? याज्ञवल्क्य ने बताया- अन्न और प्राण को दो देवता कहा जाता है.

विदग्ध ने अगला प्रश्न पूछा- एक देव किसे मानेंगे? प्राण रूपी परमात्मा को ही एकमात्र देव या परमदेव कहा जाना चाहिए- याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया.

महर्षि याज्ञवल्क्य ने वेदों में वर्णित देवताओं के बारे में यह सरल व्याख्या की. इससे जनक की सभा में मौजूद सभी विद्वान नतमस्तक हो गए और उन्हें श्रेष्ठ मान लिया.

याज्ञवल्क्य ने इत प्रकार 33 कोटि के देवताओं के बारे में बताया जिसे वेदों के मर्मज्ञों ने स्वीकार किया. कोटि के दो अर्थ होते हैं- वर्ग और करोड़. इसलिए देवताओं की 33 कोटि मानी जानी चाहिए न कि 33 करोड़. (प्रश्न उपनिषद से)

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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