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रुरु मनुष्य की बोली में सर्प को बात करते देख चौंक गया. यह जानकर उसे दुखद आश्चर्य हुआ कि जल के सर्पों में विष ही नहीं होता. डुण्डुभ की बात सुनकर रुरु को ज्ञान हुआ और अपने किए पर पछतावा हुआ कि मैं व्यर्थ ही निर्दोष सर्पों को मारता रहा.
रुरु ने सर्प से पूछा- हे सर्प तुम मनुष्य की भाषा में बात करते हो, तुम कौन हो? सर्प ने बताया- मैं पूर्वजन्म में सहस्त्रपाद नामक ऋषि था. खगम नामक एक मेरा मित्र था.
एक दिन मेरा मित्र अग्निहोत्र कर रहा था तब मैंने हास्य करते हिए तिनकों का एक सर्प बनाया और मित्र को डराने लगा. वह उस सर्प के भय से मूर्च्छित हो गया.
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