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उस समय एक बुद्धिकोविद नामक बुद्धिमान ब्राह्मण हरिदास के पास आया. वह विशिष्ट विद्याओं का जानकार था. उसने हरिदास के सामने मन्त्र जपकर देवी की आराधना की. तभी महान आश्चर्य घटित हुआ. देखते देखते एक विमान प्रकट हो गया.
युवक की विद्याओं से मुग्ध होकर हरिदास ने सोचा कि यह मेरी बेटी महादेव के लिए सर्वथा योग्य है और उसे अपनी कन्या का सुयोग्य वर समझकर चुनाव कर लिया.
उधर हरिदास का एक पुत्र भी था, मुकुन्द. वह पढाई के लिये अपने गुरु के आश्रम में ही रहता था. जब वह अपने गुरु से सभी विद्याओं का अध्ययन कर चुका तो उसने गुरुदक्षिणा के लिए गुरु से विनती की.
गुरु ने उससे कहा मुकुंद! यदि अपनी शिक्षा की गुरु दक्षिणा देना ही चाहते हो तो गुरु दक्षिणा के रूप में अपनी बहिन महादेवी मेरे पुत्र दैवेज्ञ पुत्र धीमान को समर्पित कर दो जो ज्योतिष और काल गणना का विद्वान है.
मुकुंद ने धीमन और उसकी परम विद्याओं के बारे में न केवल सुन रखा था बल्कि आश्रम में देख भी रखा था. उसने बिना विचारे ही कहा- ‘ठीक है’. गुरूजी को आश्वासन दे मुकुंद अपने घर आ गया.
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