इंद्र के साथ विश्वामित्र का बैर हो गया था. मेघों ने जल बरसाना बंद कर दिया. भयंकर सूखा पड़ा. विश्वामित्र एक चांडाल के घर भीख मांगने गए. क्रोध में वह कुत्ते के मांस से देवताओं को बलि देने लगे.

देवता भय से कांपने लगे और इन्द्र जल बरसाया. इंद्र के उसकाने पर उन्होंने राजा हरिश्चन्द्र को मायाबल से स्वप्न दिखाया और उनका सारा राजपाट दान में मांग लिया.

जब हरिश्चंद्र ने सर्वस्व दान कर दिया तो काशी की ओर चले क्योंकि काशी शिव के त्रिशूल के नोक पर बसी है और उसपर महादेव के अतिरिक्त किसी का अधिकार नहीं.

हरिश्चंद्र ने दान दे दिया तो विश्वामित्र ने कहा कि बिना दक्षिणा के दान अधूरा है. इसलिए आप दक्षिणा स्वरूप मुझे हजार स्वर्णमुद्राएं भी दें. उन स्वर्ण मुद्राओं को प्राप्त करने के लिए हरिश्चंद्र को अपनी पत्नी शैव्या को बेचना पड़ा और स्वयं चांडाल का काम करने लगे.

यह कथा अति लोकप्रिय है जिसे बताने की आवश्यकता नहीं. खैर, जब वशिष्ठ ने सुना कि उनके यजमान हरिश्चंद्र से विश्वामित्र ने छल से सब छीन लिया है तो उनको शाप दिया कि तुम बकुला हो जाओ.

विश्वामित्र ने वशिष्ठ को भी चिड़ा बन जाने शाप दे दिया. पक्षी बनकर दोनों ने बड़ा घोर युद्ध किया जिससे आकाश कांपने लगा. ब्रह्मा ने दोनों के बीच सुलह कराकर युद्ध रुकवाया. (वाल्मिकी रामायण, महाभारत और मार्कण्डेय पुराण की कथाओं का संकलन)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here