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राजा सत्यव्रत प्रतापी राजा थे. सत्यव्रत धर्मनिष्ठ थे. उन्होंने सभी यज्ञ किए थे. प्रजा भी धर्मनिष्ठ थी. परंतु दैवयोग से सत्यव्रत जैसे धर्मनिष्ठ के मन में एक विचित्र इच्छा पैदा हो गई.

सत्यव्रत ने ऋषियों से स्वर्ग का वर्णन सुना तो वह उसकी कल्पना में लीन रहने लगे. उनकी इच्छा हुआ कि स्वर्ग लोग उनके सुगम रहे. जब इच्छा करे वह स्वर्गलोक में जाकर भ्रमण कर सकें और जब चाहें पृथ्वी पर आ जाएं.

स्वर्गलोक पृथ्वीवासियों के ऐसा सुलभ तो है नहीं. सत्यव्रत यह बात जानते थे फिर भी मन तो चंचल होता ही है. एक बार ऋषि विश्वामित्र ने कहीं दूर-दराज क्षेत्र में समाधि लगाई और लम्बे समय से वापस नहीं आ पाए.

विश्वामित्र जब साधना में लीन थे उसी काल में भयंकर सूखा पड़ा. विश्वामित्र का परिवार अन्न-जल की तलाश में भटक रहा था, तभी राजा सत्यव्रत से भेंट हो गई. सत्यव्रत ने ऋषि की अनुपस्थिति में उनके परिवार की पूरी जिम्मेदारी ली.

जब विश्वामित्र वापस लौटे तो उन्हें परिवार वालों ने राजा के उपकार की बात बताई. विश्वामित्र सत्यव्रत के पास आए और इस उपकार के बदले एक वरदान मांगने को कहा.

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