तकनीक से सहारे सनातन धर्म के ज्ञान के देश-विदेश के हर कोने में प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से प्रभु शरणम् मिशन की शुरुआत की गई थी. इस मोबाइल एप्पस से देश-दुनिया के कई लाख लोग जुड़े और लाभ उठा रहे हैं. सनातन धर्म के गूढ़ रहस्य, हिंदू ग्रथों की महिमा कथाओं और उन कथाओं के पीछे के ज्ञान-विज्ञान से हर हिंदू को परिचित कराने के लिए प्रभु शरणम् मिशन कृतसंकल्प है. देव डराते नहीं. धर्म डरने की चीज नहीं हृदय से ग्रहण करने के लिए है. इस पर कभी आपको कोई डराने वाले, अफवाह फैलाने वाले, भ्रमित करने वाले कोई पोस्ट नहीं मिलेगी. तभी तो यह लाखों लोगों की पसंद है. आप इसे स्वयं परखकर देखें. नीचे लिंक है, क्लिक कर डाउनलोड करें- प्रभु शरणम्. आइए साथ-साथ चलें; प्रभु शरणम्!

Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें

इसके साथ-साथ प्रभु शरणम् के फेसबुक पर भी ज्ञानवर्धक धार्मिक पोस्ट का आपको अथाह संसार मिलेगा. जो ज्ञानवर्धक पोस्ट एप्प पर आती है उससे अलग परंतु विशुद्ध रूप से धार्मिक पोस्ट प्रभु शरणम् के फेसबुक पर आती है. प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े. लिंक-
[sc:fb]

इंदिरा एकादशी श्राद्ध पक्ष की एकादशी है इसलिए इसका विशेष महत्व है. इस एकादशी व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में आया है कि जिन पितरों के बारे में आशंका हो कि उन्हें कहीं नर्क न भोगना पड़ा रहा हो उनके निमित्त इस व्रत को करने से उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है.

इस व्रत की महिमा और विधि का वर्णन देवर्षि नारद ने किया है. हम पहले आपको व्रत की कथा सुनाते हैं फिर व्रत की वह विधि भी बताएंगेजो नारदजी ने राजा इंद्रसेन को कही थी.

इंदिरा एकादशी व्रत कथाः-

सतयुग के समय की बात हैं इंद्रसेन नामक राजा हुआ करते थे. राजा भगवान विष्णु के प्रचंड भक्त थे. यज्ञ एवम उपवास के सभी धार्मिक कार्य पूरी श्रद्दा से करते थे.

उनके नगर में भी इन नियमों का पालन होता था. नगर में सुख शांति एवम उन्नति का कारण शायद सभी का धार्मिक एवम् कर्मठ होना ही था. इस कारण इंद्रसेन बहुत खुश थे.

एक दिन आकाश विचरण करते नारद मुनि ने इंद्रसेन के दरबार में प्रवेश किया. उन्हें आता देख इंद्रसेन राजा अपने स्थान से उठ खड़े हुए और पूरे आदर के साथ उन्होंने नारद जी को आसन प्रदान किया.

देवर्षि के चरणों को धोकर उनकी विधिवत पूजा की. स्तुति आदि के उपरांत उन्हें उत्तम भोग प्रदान किया और सारी स्वयं राजा और रानी स्वयं करते रहे, सेवकों और दासों को नहीं सौंपा.

राजा द्वारा इस प्रकार मिले पूजा-सम्मान से नारद मुनि बहुत प्रसन्न हुए. कुछ देर बाद नारद मुनि ने राजा से पूछा कि आपके जीवन एवम् राज्य में सब सकुशल तो हैं?

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here