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श्रीकृष्ण ने व्रज लौटने का निश्चय किया. व्रज में श्रीकृष्ण को अनुपस्थिति देखकर अरिष्टासुर ने व्रज को तहस-नहस करने के उद्देश्य से व्रज में प्रवेश किया. उसने वृषभ का रूप धारण कर रखा था.
उसका शरीर असामान्य रूप से विशाल था. खुरों के पटकने से धरती में कंपन हो रहा था. पूंछ खड़ी किए हुए अपने भयंकर सींगों से चहारदीवारी, खेतों की मेड़ आदि तोड़ता हुआ वह आगे बढ़ता ही जा रहा था.
उस तीखे सींग वाले वृषभ को देख समस्त वृजवासी कृष्ण को पुकारते हुए वन की ओर भागे. पूरे वृन्दावन को भयभीत भागता देखकर श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर को ललकारा.
क्रोध से तिलमिलाता अरिष्टासुर खुरों से धरती को खोदता हुआ श्रीकृष्ण पर झपटा. श्रीहरि ने उसके दोनों सींग पकड़ ऐसा झटका दिया कि वह अठारह कदम पीछे जाकर चारों खाने चित्त हो गया.
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