भक्त की लालसा होती है कि भगवान प्रसन्न होकर दर्शन दें. भगवान को प्रसन्न करने को भेंट अर्पित करता है, भंडारे कराता है, जागरण कराता है. भगवान इससे ही रीझते हैं? सदना जी की कथा आपकी सोच बदल देगी.
कसाई वृति करने वाला भी भगवान का सर्वप्रिय भक्त हो सकता है. सदना जी की कथा बहुत कुछ सिखाती है. भक्ति किसे कहते हैं, भगवान कैसे रीझते हैं इसे समझने को सदना जी की कथा पढ़नी चाहिए. मन चंगा तो कठोती में गंगा. यही तो है सदना जी की कथा का सारतत्व. इस कथा को नारायण के समर्पित भक्त के रूप में पढ़िएगा तो आनंद होगा. मन पुलकित हो जाएगा.
काशी के एक ब्राह्मण के सामने से एक गाय भागती हुई किसी गली में घुस गई. तभी वहां एक आदमी आया. उसने गाय के बारे में पूछा. पंडितजी माला फेर रहे थे इसलिए कुछ बोला नहीं बस हाथ से उस गली का इशारा कर दिया जिधर गाय गई थी.
पंडितजी इस बात से अंजान थे कि वह आदमी कसाई है और गौमाता उसके चंगुल से जान बचाकर भागी थीं. कसाई ने पकड़कर गोवध कर दिया. अंजाने में हुए इस घोर पाप के कारण पंडितजी अगले जन्म में कसाई घर में जन्मे. नाम पड़ा- सदना. पूर्वजन्म के पुण्यकर्मो के कारण कसाई होकर भी उदार और सदाचारी थे.
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कसाई परिवार में जन्मे होने के कारण सदना मांस बेचते तो थे पर भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी. एक दिन सदना को नदी के किनारे एक पत्थर पड़ा मिला. पत्थर अच्छा लगा इसलिए वह उसे मांस तोलने के लिए अपने साथ ले आए.
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वह इस बात अंजान थे कि यह वह वही शालिग्राम थे जिन्हें पूर्वजन्म में नित्य पूजते थे. सदना कसाई ने पूर्वजन्म के शालिग्राम को इस जन्म में मांस तोलने का बटखरा बना लिया. आदत के अनुसार सदना काम करते हुए भी ठाकुरजी के भजन गाते रहते थे.
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