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राजा इंद्रद्यु्मन समय की गति से चलकर ब्रह्मलोक पहुंचे. ब्रह्माजी की स्तुति के बाद उन्हें भगवान की कही बातें बताई. ब्रह्माजी यह जानकर बड़े प्रसन्न हुए. सौभाग्य मानकर वह इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए.

ब्रह्माजी ने कहा- तुम आगे चलो मैं पीछे से आऊंगा. एक बात का ध्यान रखना. जब तुम वापस जाओगे तब तक धरती पर बहुत कुछ बदल चुका होगा. तुम्हारी कई पीढियां बीत गईं हैं. हजारों वर्ष बीत चुके होंगे. अब तक 71 कल्प निकल गए. मनु भी बदल चुके हैं. इसलिए विस्मय में मत रहना.

ब्रह्माजी से विदा लेकर इंद्रद्युम्न नारद के साथ पृथ्वी पर आए. अब वहां राजा गाला का राज्य स्थापित हो चुका था. जो मंदिर विश्वावसु ने बनाया था उसका अधिकांश अंश लुप्त चुका है. इंद्रद्युम्न ने पूजा की तैयारी शुरू की.

राजा गाला को लगा कि कोई उसके राज्य में अतिक्रमण करने आया है. वह अपनी सेना लेकर चढ़ आया पर जब दृश्य देखा तो विनीत हो गया. कुओं से निकालकर 108 कलशों में जलभरकर  भगवान के शिशुरूप का अभिषेक आरंभ हुआ.

भगवान ने नारदजी को वचन दिया था कि वह एक साधारण बालक की तरह अपनी लीलाएं करके उन्हें आनंदित करेंगे. इसलिए भगवान ने लीला आरंभ की. इतने स्नान से भगवान को सर्दी लग गई. भगवान का पंद्रह दिनों तक विशेष उपचार किया गया. तब वे जाकर बलरामजी और सुभद्रा के साथ स्वस्थ  हुए.

भगवान श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी की बिना-हाथ पांव वाली मूर्तियां इसी कारण ऐसी हैं. उन प्रतिमाओं को ही मंदिर में स्थापित कराया गया. कहते हैं विश्वावसु संभवतः उस जरा बहेलिए का वंशज था जिसने अंजाने में भगवान कृष्ण की हत्या कर दी थी. विश्वावसु शायद कृष्ण के पवित्र अवशेषों की पूजा करता था. ये अवशेष मूर्तियों में छिपाकर रखे गए हैं.

विद्यापति और ललिता के वंशज जिन्हें दैत्यपति कहते हैं उनका परिवार ही यहां अब तक पूजा करता है.

भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्ति के निर्माण की प्रक्रिया भी अनोखी है. जिस वर्ष में आषाढ़ मास में अधिकमास होता है उस वर्ष भगवान की नई प्रतिमा बनाई जाती है. पुरानी प्रतिमा को मंदिर के प्रांगण में ही समाधि दे जाती है. इस प्रक्रिया को नवकलेवरम कहते हैं. मंदिर के पुजारी आंख बंद करके प्रतिमा का निर्माण करते हैं. फिर एक विशेष प्रक्रिया से प्राण प्रतिष्ठा की जाती है.

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कहते हैं जो आंख खोल देता है उसके पूरे कुल का नाश हो जाता है. भगवान जगन्नाथ से जुड़ी अऩेक ऐसी बातें, सत्य और मान्यताएं हैं जो किसी और मंदिर में नहीं. यह सब मैं भगवान जगन्नाथ की शोभायात्रा के दिवस पर प्रभु शरणम् ऐप्प में विस्तार से दूंगा.

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(नोटः इस पोस्ट में प्रयुक्त सभी चित्र इंटरनेट से लिए गए हैं. किसी को आपत्ति हो तो हमें सूचित करें, हटा लिया जाएगा.)

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