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शिवरात्रि आई तो नंदबाबा आदि सभी गोपों ने मिलकर शिवजी की विशेष पूजा-अर्चना का निश्चय किया. सभी ने अपनी-अपनी बैलगाड़ी सजाई और पूरी तैयारी करके अंबिका वन की ओर चले.
सरस्वती नदी में स्नान के बाद भगवान भोलेनाथ और माता भवानी की भक्तिपूर्ण पूजा की. गौएं, सोना, वस्त्र आदि दान किया और निर्धनों को भोजन कराया. गोपों ने तो महाशिवरात्रि व्रत रखा था इसलिए रात्रि जागरण करने लगे.
ग्वाल बालक सरस्वती के तट पर ही सो गए. अंबिकावन में एक बहुत विशाल अजगर रहता था. उसके भय से कोई अंबिकावन में आता नहीं था. आसपास के सभी जीवों को वह चट कर चुका था.
लंबे समय से भूखा अजगर दैवयोग से उधर पहुंच गया. उसने एक साथ इतने मानव देखे तो प्रसन्न हो गया. अजगर ने नदी किनारे विश्राम कर रहे नंदबाबा को पकड़ लिया और निगलने लगा.
नंदबाबा प्राण रक्षा के लिए चिल्लाए. सभी गोप लाठी-डंडे और जलती लकड़ियां लेकर दौड़े. उन्होंने अजगर पर प्रहार करना शुरू कर दिया लेकिन अजगर तो उन्हें निगलता ही जा रहा था. हाहाकार मच गया चारों तरफ.
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