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देवराज इंद्र का अहंकार बहुत बढ़ गया था. स्वर्ग के स्वामी होने के मद में वह चूर रहते थे. एक बार इंद्रसभा सजी हुई थी. स्वर्ग की अप्सराएं नृत्य से इंद्र का मनोरंजन कर रही थीं.

उस सभा में इंद्र के साथ उनके सभी मंत्रिगण, गन्धर्वराज, किन्नर, समस्त देवता, ग्यारह रूद्र, सात मारुत, बारह आदित्य आदि विराजमान थे.

देवगुरु बृहस्पति वहां पधारे. देवगुरू के सम्मान में सभी देवतागण उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम किया लेकिन इंद्र न तो अपने आसन से उठे और न ही गुरू को प्रणाम किया.

इंद्र के इस व्यवहार से बृहस्पति आश्चर्यचकित थे. उन्हें इंद्र से व्यवहार की अपेक्षा न थी. इंद्र को उन्होंने भूल सुधारने का अवसर भी दिया लेकिन गर्व में चूर इंद्र बैठे ही रहे.

बृहस्पति ने किसी से कुछ भी नहीं कहा और चुपचाप वहां से चले गए. उनके जाने के बाद इंद्र की समझ में आया कि उन्होंने देवगुरु को अपमानित कर दिया है.

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