धनतेरस को धन्वंतरि पूजा

आप जानते हैं धनतेरस पूजा सिर्फ प्रचुर धन संपदा की प्राप्ति के लिए नहीं बल्कि अकाल मृत्यु टालने वाली है. इस दिन माता लक्ष्मी के साथ-साथ यमराज, औषधि-आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि और स्वर्ण के स्वामी कुबेर जी की भी पूजा की जाती है. कार्तिक कृष्ण पक्ष की तृतीया धनतेरस की महिमा बहुत बड़ी है जिसे जानकर आप खुश हो जाएंगे.

धनतेरस पूजा-lakshmi-dhanteras-yamraj-deepdaan-dhanwantari
धनतेरस की प्रतीक्षा हमें सालभर रहती है. शायद ही कोई ऐसा सनातनी हो जो इस दिन दक्षिण दिशा की ओर दीपक न जलाता हो अथवा बर्तन न खरीदता हो. धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा की ओर दीपक क्यों जलाया जाता है? धनतेरस को बर्तन क्यों खरीदा जाता है? इन हिंदू परंपराओं के  पीछे बहुत बड़ा कारण है. इन्हें जरूर जानना चाहिए.

धनतेरस की पूजा अकाल मृत्यु के भय का अंत करने वाली, आरोग्य देने वाली और धन-धान्य से भरने वाली है. यह ऐक ऐसी तिथि है जिस दिन तीन-तीन देवताओं की पूजा होती है- मृत्यु के देवता यमराज, आरोग्य के देवता धन्वंतरि और स्वर्ण के स्वामी कुबेर की. यानी धनतेरस की पूजा करके आप अकाल मृत्यु को टाल सकते हैं, बीमारियों से बच सकते हैं और फिर धन-धान्य से परिपूर्ण हो सकते हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि ये पूजा बहुत ही सरल है.

इस पोस्ट में आप क्या-क्या जानेंगेंः

  • धनतेरस पूजा से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं व कथा
  • धनतेरस की पूजा की विधि, मंत्र
  • धनतेरस की कथा, धनतेरस पूजा के मंत्र,
  • धनतेरस को यमराज को प्रसन्न करने के लिए दीपदान की विधि, महत्व
  • आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि के धनतेरस को आह्वान की सरल विधि
  • कुबेर की पूजा की सरल और संक्षिप्त विधि जिसे आप स्वयं कर सकते हैं .

सबसे पहले वह पौराणिक कथा जानिए जो बताती है कि धनतेरस पूजा को दक्षिणमुखी दीप जलाने से क्यों अकालमृत्यु का भय टल जाता है. यमराज को दीपदान की सरलतम विधि जानेंगे. बस एक मिनट की पूजा है. उसके बाद हम आपको भगवान धन्वंतरि के पूजन की वैदिक विधि बताएंगे और कुबेर महाराज के पूजन की भी विधि. यह सारी पूजा आप कुछ ही मिनटों में और स्वयं कर सकते हैं. सबसे पहले वह पौराणिक कथा जानते हैं-

धनतेरस की कथाः
एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा- तुम लोग अनंत काल से प्राणियों के शरीर से प्राण का हरण कर निष्प्राण करने का दुखदायी कार्य कर रहे हो. प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय, समय क्या तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या? यदि कभी ऐसा हुआ है तो मुझसे कहो, आज में तुम्हारी पीड़ा सुनने को उत्सुक हूं.

दूत यम देवता के भय से पहले तो यही कहते रहे कि हे स्वामी हम तो अपना कर्तव्य निभाते है, आपकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु यमदेवता समझ गए कि दूत ये बातें किसी दंड के भय से या कर्तव्यविमुख घोषित कर दिए जाने के भय से कह रहे हैं.

उन्होंने यमदूतों के साथ प्रेम से मीठी बातें कीं और उनके मन का भय दूर कर दिया. फिर उन्होंने अपना वही प्रश्न किया.

इस बार एक दूत ने एक बताया- हे महाराज एक बार राजा हेम के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया था. इच्छा हो रही थी कि उसके प्राण न लें क्योंकि वह तो अल्पायु था.

मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में उसके प्राण शरीर से बाहर आ रह थे लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके.

यमराज ने कहा- मुझे विस्तार से सारा प्रसंग सुनाओ.

यमराज का आदेश पाकर दूत ने प्रसंग बताना शुरू किया- हे प्रभो! हंस नामक एक प्रतापी राजा शिकार के लिए वन में निकला और भटकता हुआ दूसरे राजा हेमराज के राज्य में पहुंच गया.भूख-प्यास से व्याकुल राजा हंस का हेमराज ने बड़ा स्वागत किया. उसी दिन हेमराज को पुत्र की प्राप्ति हुई थी. कई वर्ष की प्रतीक्षा के बाद उसके यहां पुत्ररूप में संतान की प्राप्ति हुई सो बहुत बड़ा उत्सव हुआ. परंपरा के अनुसार ज्योतिषी को बुलाया गया.

हेमराज के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की- हे राजन! इसका विवाह मत करना क्योंकि विवाह के चौथे ही दिन सर्प के काटने से इसकी अकाल मृत्यु हो जाएगी.

यह सुनते ही सारा राज्य शोक में डूब गया. अतिथि के रूप में वहां उपस्थित राजा हंस को भी बहुत शोक हुआ.

उसने हेमराज को सांत्वना देते हुए कहा- आप चिंता न करें. मैं राजकुमार के प्राणों की रक्षा करूंगा. अपने वचन का निर्वाह करने के लिए राजा हंस ने यमुना तट पर एक ऐसे किले का निर्माण कराया जिसमें बिना अनुमति हवा एक पतंगे का भी प्रवेश न हो सके.

उसी किले में सुरक्षा के बीच राजकुमार तरूण हुआ. राजकुमार ने कभी कोई स्त्री नहीं देखी थी परंतु देवयोग से उसे एक दिन एक राजकुमारी दिख गई. दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गए और उन्होंने आपस में गंधर्व विवाह कर लिया.

दोनों साक्षात कामदेव औऱ रतिदेवी के युगल के समान प्रतीत होते थे. राजा हंस को पता चला तो उसे ज्योतिषी की भविष्यवाणी याद आई. हंस और राजा हेमराज दोनों ने ही विधि के विधान को बदलने का निश्चय किया.

विवाह के चौथे दिन मुझे उसके प्राण हरण के लिए जाना था. मैं अपना कर्तव्य पूरा करने पहुंचा. उन लोगों ने भांति-भांति के यत्न किए ताकि मेरा प्रवेश न हो सके और चौथा दिन बीत जाए पर आपके प्रताप से आपके दूतों का प्रवेश कहीं कोई रोक ही नहीं सकता.

मैंने उसके प्राण हर लिए. जहां कुछ पल पूर्व तक उत्सव का वातावरण था वहां चीख-पुकार मच गई. नवविवाहिता राजकुमारी तो ऐसा दारूण विलाप कर रही थी कि मेरा कठोर मन भी उसे सुनकर विचलित हो गया. हे महाराज मैं स्वयं भी रोने लगा परंतु कर्तव्य की डोर से बंधा होने के कारण मैं विवश होकर वहां से उसके प्राण लेकर चला आया.

इतनी कथा सुनाकर यमदूत चुप हो गया. वहां एकदम से शांति हो गई. स्वयं यमराज भी इसे सुनकर भावुक हो गए.

कुछ देर चुप रहने के बाद बोले- तुम्हारी इस करूण कथा को सुनकर मैं भी विचलित हो गया हूं पर क्या करूं. विधाता ने मुझे यही उत्तरदायित्व सौंपा है. विधि के विधान की रक्षा के लिए हमें यह कार्य करना ही होता है अन्यथा पृथ्वी पर असंतुलन हो जाएगा.

यह सुनकर दूत ने साहस करके पूछा- महाराज आपकी बात सर्वथा सत्य है. यदि प्राणियों के प्राण न हरे गए तो पृथ्वी पर स्थान ही नहीं बच जाएगा. उसकी संपदा एक दिन में ही समाप्त हो जाएगी परंतु हे महाराज क्या यह नहीं हो सकता कि किसी के भी प्राण असमय न लिए जाएं.

उस राजकुमार की अवस्था तो मात्र सोलह वर्ष की थी. उसने अपना जीवन देखा ही नहीं था. यदि उसे जीवन में कुछ वर्ष मिल जाते और वह जीवन के सुखों का उपभोग करने के उपरांत काल कवलित होता तो संभवतः ऐसा दुख न होता.

क्या ऐसा कोई उपाय नहीं हो सकता जिससे प्राणी असमय मृत्यु के शिकार न हो जाए. आप इतना तो कर ही सकते हैं. कृपया ऐसा उपाय बताइए जिससे प्राणियों को अकाल मृत्यु नो भोगनी पड़े.

इस पर यमराज ने कहा- तुम उचित कहते हो. इसका एक रास्ता मैं बताता हूं.

जो प्राणी कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं रहेगा. उस जीव को जीवनभर धर्ममार्ग पर चलने का वचन देना होगा. जो ऐसा करेगा उसे कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होगी. वह समस्त सुखों का उपभोग करने के उपरांत ही मृत्यु को प्राप्त होगा.

[irp posts=”7475″ name=”स्थिर लक्ष्मी यानी टिकाऊ धन के लिए धनतेरस पूजा कैसे शुरू हुई?”]

धनतेरस पर दक्षिण दिशा में दीप जलाने अकाल मृत्यु से होती है रक्षाः

यमदेव की पूजा के बाद घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाला दीपक जिसमें कुछ पैसा और कौड़ी डालकर पूरी रात्रि जलाना चाहिए. दीपदान करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-

मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्र्योदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति।।

विशेषरूप से यदि घर की लक्ष्मी इस दिन दीपदान करें तो पूरा परिवार स्वस्थ रहता है.

क्या आपको पता है पांच लाख से ज्यादा लोग हर प्रकार केपूजा-पाठ से संबंधित सारी जानकारी, हर कथा के लिए प्रभु शरणम् पर भरोसा करते हैं. आप इसे क्यों गंवा रहे हैं जबकि यह फ्री है. नीचे लिंक क्लिक कर आप भी जुड़ें .

मोबाइल में  ऊपर दिया लिंक काम न करे तो प्लेस्टोर में सर्च करें-PRABHU SHARNAM

यह तो हुई धनतेरस की कथा, दीपदान का महत्व. अब जानेंगे धनतेरस की वैदिक पूजा विधि लेकिन संक्षिप्त रूप में जिसे स्वयं आप आसानी से कर सकते हैं.

धनतेरस की पूजा की विधिः

कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन धनतेरस पूजा को यमराज के लिए दीपदान के साथ भगवान धनवन्तरि, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती है. समुद्र मंथन के बाद धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. वह धनतेरस का ही दिन था. इसलिए धनतेरस को धन्वंतरि की विशेष पूजा की जाती है.

धन्वन्तरि आरोग्य के भी देवता हैं. इनकी पूजा से सुख-समृद्धि के साथ आरोग्य की प्राप्ति भी होती है. पुराणों में ‘धन्वन्तरि को भगवान विष्णु का अंशावतार’ भी माना गया है. धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि का पूजन इस प्रकार करें. यह पूजा प्रदोष काल में करनी चाहिए. शास्त्रों के अनुसार, सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट की अवधि को प्रदोषकाल कहते हैं.

इसी काल में यमराज के लिए दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना अति शुभ माना जाता है. इस समय पूजा करने से घर-परिवार में स्थाई लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.

[irp posts=”7758″ name=”धनतेरस कथाः हरि के शाप से लक्ष्मी के उद्धार का दिन है कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी”]

धनतेरस पूजा विधि:-

प्रदोष काल 2 घण्टे एवं 24 मिनट का होता हैं. अपने शहर के सूर्यास्त समय अवधि से लेकर अगले 2 घण्टे 24 मिनट कि समय अवधि को प्रदोष काल माना जाता हैं. अलग-अलग शहरों में प्रदोष काल के निर्धारण का आधार सूर्योस्त समय के अनुसार निर्धारित करना चाहिये.

धनतेरस पूजा के दिन प्रदोषकाल में दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना शुभ रहता है.

धनतेरस को धन्वंतरि पूजा

–सर्वप्रथम नहाकर साफ वस्त्र धारण करें.

–भगवान धन्वन्तरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके भगवान धन्वन्तरि का आह्वान करें.

— आह्वान के लिए निम्न मंत्र का प्रयोग करें-

सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं, अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।

— इसके पश्चात पूजन स्थल पर आसन देने के लिए चावल चढ़ाएं.

— इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़ें.

— भगवान धन्वन्तरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं.

— चांदीपात्र या किसी अऩ्य पात्र में खीर का भोग लगाएं.

— भोग लगाने के बाद आचमन करा दें.

— उसके बाद मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं.

— भगवान धन्वन्तरि को वस्त्र समर्पण करें.

— धन्वंतरि आयुष के देव हैं इसलिए उन्हें औषधि भी अर्पित की जाती है.

— शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भगवान धन्वन्तरि को जरूर चढ़ाएं. औषधियां अर्पित करके रोगनाश की कामना निम्न मंत्र का जाप करते हुए करना चाहिए.

ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।

धनतेरस को स्थिर लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है.

इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजन करने के साथ-साथ सात धान्यों (गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) की पूजा की जाती है. सात धान्यों के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन किया जाता है.

धनतेरस को कुबेर को प्रसन्न करने का मंत्र:-

शुभ मुहूर्त में धनतेरस पूजा के दिन धूप, दीप, नैवैद्ध से पूजन करने के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए कुबेर का आह्वान किया जाता है. निम्न मंत्र से कुबेर की पूजा की जा सकती है.

यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।

धनतेरस को क्यों खरीदते हैं सोना या बर्तनः

धन्वंतरि अमृत से भरा एक स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए थे. इसी के प्रतीक स्वरूप धनतेरस को बर्तन या स्वर्ण खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. कहते हैं धनतेरस को सोना या बर्तन खरीदने से धन्वंतरि का घर में वास होता है और धन-धान्य तथा आरोग्य का लाभ मिलता है.

हिंदू धर्म से जुड़ी सभी शास्त्र आधारित जानकारियों के लिए प्रभु शरणम् से जुड़ें. धर्मप्रचार के लिए बना सर्वश्रेष्ठ हिंदू ऐप्प प्रभु शरणम् फ्री है.

Android मोबाइल ऐप्प डाउनलोड करने के लिए यहां पर क्लिक करें

प्रभु शरणं के पोस्ट की सूचना WhatsApp से चाहते हैं तो अपने मोबाइल में हमारा नंबर 9871507036 Prabhu Sharnam के नाम से SAVE कर लें। फिर SEND लिखकर हमें उस नंबर पर WhatsApp कर दें. जल्दी ही आपको हर पोस्ट की सूचना WhatsApp से मिलने लगेगी. यदि नंबर सेव नहीं करेंगे तो तकनीकि कारणों से पोस्ट नहीं पहुँच सकेंगे.

धार्मिक अभियान प्रभु शरणम् के बारे में दो शब्दः 

सनातन धर्म के गूढ़ रहस्य, हिंदूग्रथों की महिमा कथाओं ,उन कथाओं के पीछे के ज्ञान-विज्ञान से हर हिंदू को परिचित कराने के लिए प्रभु शरणम् मिशन कृतसंकल्प है. देव डराते नहीं. धर्म डरने की चीज नहीं हृदय से ग्रहण करने के लिए है. तकनीक से सहारे सनातन धर्म के ज्ञान के देश-विदेश के हर कोने में प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से प्रभु शरणम् मिशन की शुरुआत की गई थी. इससे देश-दुनिया के कई लाख लोग जुड़े और लाभ उठा रहे हैं. आप स्वयं परखकर देखें. आइए साथ-साथ चलें; प्रभु शरणम्!

[irp posts=”6233″ name=”इसे पढ़ लें तो दीवाली पूजा के लिए कुछ और पढ़ने की जरूरत नहीं होगी.”]

इस लाइऩ के नीचे फेसबुक पेज का लिंक है. इसे लाइक कर लें ताकि आपको पोस्ट मिलती रहे. धार्मिक व प्रेरक कथाओं के लिए प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े, लिंक-

हम ऐसी कहानियां देते रहते हैं. Facebook Page Like करने से ये कहानियां आप तक हमेशा पहुंचती रहेंगी और आपका आशीर्वाद भी हमें प्राप्त होगा: Please Like Prabhu Sharnam Facebook Page

धार्मिक चर्चा करने व भाग लेने के लिए कृपया प्रभु शरणम् Facebook Group Join करिए: Please Join Prabhu Sharnam Facebook Group

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here