नीचे एक कमरा सा बना हुआ था करीब पांच फुट चौड़ा और छह फुट लम्बा। उसमें 5 बड़े बड़े घड़े रखे हुए थे पूरे सोने चांदी से भरे। पास में वो बच्चा लेटा हुआ था। वह बच्चा नए नए कपड़ो में अच्छा खासा तैयार किया हुआ। लेकिन उसकी सांसे रुक-रुक के चल रही थी और पास में एक दिया जल रहा था जिसका तेल लगभग ख़त्म हो चुका था और वो बुझने ही वाला था। सबने उस बच्चे को मरा हुआ समझ लिया और उस नट को दुबारा बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया।

तभी वो तांत्रिक बाबा आगे आए और उन्होंने दिये की बत्ती को थोडा बढ़ा दिया। दीये की लौ फिर तेज हो गयी और बच्चे ने आखें खोल दी। सबकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा मगर बच्चे ने किसी को भी पहचाना नहीं और अनजान की तरह सबका चेहरा देखने लगा।

तांत्रिक बाबा ने सबसे कहा की “ये बच्चा अभी जिन्दा है, लेकिन ये तभी जिन्दा बच सकता है अगर ये मेरे सिद्ध स्थल(जहां बाबा की धूनी सुलग रही थी) पर पहुँच जायेगा। वरना इसे कोई नहीं बचा सकता। इसे लेकर मेरे स्थान पर चलो और सब इस बात का ध्यान रखना कि यहां पर जलता ये दिया न बुझने पाए। इसमें तेल बढ़ा दो और इसकी अच्छी तरह से देख रेख करना जब तक मैं इसे बुझाने के लिए न कह दूं।”

फिर कुछ लोग और तांत्रिक बाबा के साथ उस बच्चे को तांगे पर लेकर बाबा के स्थान पर पहुँच गए। वहां पर उनकी धूनी प्रज्जवलित थी   और आस पास साधना का सामान रखा हुआ था।

लेकिन यहां पहुंचकर बाबा ने सबको बाहर जाने को कह दिया और तांत्रिक क्रिया शुरु कर दी।  बाबा ने वहां जो कुछ भी किया वह कोई नहीं देख पाया। बाबा का तंत्र-मंत्र एक घंटे तक चलता ही रहा। इसके बाद बाबा ने एक आदमी को उस तहखाने वाली जगह पर भेजा। जहां पर बच्चे को दफन करने की कोशिश की गई थी। गांव का एक आदमी वहां वापस पहुंचा और उनसे बताया कि बाबा ने दिया बुझाने को कह दिया है।

तब जाकर लोगों की सांस में सांस आई और दिया बुझा दिया गया और अब वो बच्चा सुरक्षित था और सबको पहचानने भी लगा था।

आखिर खजाने का क्या हुआ?

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