नवरात्रि में जरूर करें कन्या पूजन

कन्या पूजन के बिना नवरात्रि पूजा पूरी नहीं होती. क्यों होता है कन्या पूजन, कैसे करें कन्या पूजन?

कन्या पूजन का विधान क्यों आया हैः शिव पुराण का संदर्भ

शिवपुराण में एक प्रसंग है कि माता पार्वती जब आठ वर्ष की थीं तो एकबार उनके पिता और पर्वतराज हिमवान साथ लेकर शिवजी की सेवा में प्रस्तुत हुए. हिमवान को नारदजी ने बता दिया था कि भगवती ने आपके घर में अवतार लिया है और इनका विवाह शिवजी से ही होना है. पार्वती जी पिता हिमवान के साथ शिवजी की सेवा में आने लगीं. शिवजी ने हिमवान के साथ बालिका गौरी को देखा तो एक कौतुक किया.

उन्होंने हिमवान से कहा- पर्वतराज हिमवान आप प्रतिदिन तो मेरे दर्शन को आ सकते हैं परंतु यह बालिका नहीं आ सकती. शिवजी प्रतीक्षा करने लगे कि अब जगदंबा क्या उत्तर देती हैं.

माता ने बड़े मृदु स्वरों में शिवजी के साथ तर्कपूर्ण रूप से प्रकृति और पुरूष का संबंध बताया. बालिका गौरी के तर्कों से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें सेवा का अवसर प्रदान किया. आपने यदि शिव पुराण पढ़ा हो तो पार्वती खंड में यह प्रसंग है. हर व्यक्ति को यह जानना चाहिए. स्त्री और पुरुष के निर्माण के पीछे विधाता की क्या सोच रही है. प्रकृति जो स्त्री का प्रतीक है और पुरुष के बीचक्या संबंध है. प्रभु शरणम् ऐप्प में इसे पुनः बताउंगा.

गौरी ने ऐसी-ऐसी ज्ञानप्रद बातें की हैं कि शिवजी प्रसन्नता से झूम उठे और उन्हें भी पिता के साथ आकर अपनी सेवा की अनुमति दे दी.

कुंआरी कन्याएं माता गौरी के समान ही पवित्र और पूजनीय मानी जाती हैं. इसलिए नवरात्रि में जब माता की विशेष आराधना की जाती है उस दौरान कन्या पूजन की विशेष रूप से मान्यता है.

कन्या पूजन की मंत्र सहित संक्षिप्त विधिः

दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं. यही कारण है कि इसी उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर भोजन कराया जाता है. माना जाता है कि होम जप और दान से देवी जितनी प्रसन्न होतीं हैं उतनी ही प्रसन्नता माता को कन्या पूजन से होती है. कन्याओं के विधिवत, सम्मानपूर्वक माता की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के हृदय से भय दूर हो जाता है. उसके मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. उस पर मां की कृपा से कोई संकट नहीं आता.

नवरात्र में कन्या पूजन के लिए जिन कन्याओं का चयन करें उनकी आयु दो वर्ष से कम न हो और दस वर्ष से ज्यादा भी न हो. एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि एक वर्ष से छोटी कन्याएं प्रसाद नहीं खा सकतीं. उन्हें प्रसाद-पूजन आदि का ज्ञान नहीं होता. इसलिए शास्त्रों में दो वर्ष से दस वर्ष की आयु की कन्याओं का पूजन करना ही श्रेष्ठ माना गया है.

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नवरात्रि की सभी तिथियों को एक-एक कन्या और नवमी को नौ कन्याओं के विधिवत पूजन का विधान है. यदि नौ नहीं कर पाते तो सात पांच या तीन कन्याओं की पूजा करें. संख्या विषम ही होनी चाहिए. कन्याओं के साथ एक छोटे बालक को भी रखना चाहिए. वह भैरव का प्रतीक होता है. माता जहां भी जाती हैं अपने भैरव को लेकर जाती हैं.

कन्या पूजन की विधिः

–सबसे पहले पूजन के लिए आई कन्याओं पर जल छिड़कर रोली-अक्षत का तिलक लगाएं.

–उसके बाद कन्याओं की आरती उतारें. फिर भैरव की भी आरती उतारें.

–आरती के बाद कन्याओं का यथासामर्थ्य प्रिय भोजन कराएं.

–भोजन के बाद आदरसहित उनका हस्त प्रक्षालन कराएं और जाने-अंजाने हुए किसी भी प्रकार के भूल-चूक के लिए क्षमा मांगे.

–फिर पैर छूकर उन्हें यथाशक्ति दान देकर विदा करना चाहिए. विदा करते समय निवेदन करें कि आप सदैव हमारे घर में शुभकार्यों में पधारती रहें.

शास्त्रों में कन्या पूजन का मंत्र भी बताया गया है. सरल मंत्र है. पूजन या आरती उतारते समय उसका उच्चारण करना चाहिए.

कन्या पूजन का मंत्रः

ऊँ मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।
नवदुर्गा आत्मिकां साक्षात् कन्याम् आवाह्यम्।।

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किस आयु की कन्या में है माता का कौन सा रूपः

  • — दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से प्रसन्न होकर माता दुख और दरिद्रता दूर करती हैं.
  • — तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति का रूप माना जाता है. त्रिमूर्ति कन्या पूजन से धन-धान्या आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है.
  • — चार वर्ष की कन्या को कल्याणी स्वरूप माना जाता है. कल्याणी कन्या पूजा से परिवार में मंगलकार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं, सबका कल्याण होता है.
  • — पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी स्वरूप कहा जाता है. रोहिणी कन्या पूजन से मनुष्य स्वयं रोगमुक्त रहता है और उसका परिवार भी प्रसन्न रहता है.
  • — छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप माना गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है.
  • — सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का कहा गया है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
  • — आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती हैं. इसका पूजन करने से व्यक्ति में वाक-पटुता आती है और वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है.
  • — नौ वर्ष की कन्या साक्षात दुर्गा कहलाती हैं. इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा उसके असाध्य कार्य पूर्ण होते हैं.
  • — दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती हैं. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है.

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