श्राद्ध कर्म से पितर तृप्त होते हैं. जिस कुल में पितर तृप्त नहीं वह कुल कभी सुख-शांति से नहीं रह सकता. श्राद्ध कर्म, तर्पण से जुड़ी काम की सारी बातें.
भाद्रपद शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से ही श्राद्ध कर्म आरंभ हो जाते हैं. प्रतिपदा तिथि प्रथम श्राद्ध का दिवस है. आज हम आपको श्राद्ध कर्म से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण और उपयोगी बातें बिंदुवार बताएंगे. याद रहे शास्त्र कहते हैं कि तमाc पूजा-पाठ-व्रत-अनुष्ठान आदि के बाद भी आपके कष्ट नहीं दूर हो रहे तो इसका अर्थ है कि आप पितृदोष से ग्रसित हैं. पितर अप्रसन्न, अतृप्त हैं. जिनके पितर तृप्त नहीं रहते उन्हें पूजा-पाठ का पूर्ण फल नहीं मिलता.
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इस पोस्ट में आप क्या-क्या जानेंगेः
- श्राद्ध कर्म तर्पण आदि क्यों जरूरी है?
- पितृपक्ष में पितरों को प्रसन्न रखने का सरल उपाय
- किन मंत्रों से किस प्रकार पिंडदान करना चाहिए?
- पिंड निर्माण की वैदिक विधि क्या है?
- श्राद्ध कर्म की तिथि का निर्धारण कैसे हो?
- किस दिन कुल के किसका श्राद्ध कर्म किया जाता है?
- श्राद्ध कर्म 2020 की तिथियां कौन सी हैं?
सबसे पहले जानें कि श्राद्ध कर्म क्यों जरूरी है-
भारतीय शास्त्रों में देवकार्य अर्थात पूजा-हवन, व्रत, यज्ञ को जितनी प्रमुखता दी गई है उससे कम महत्ता पितृपूजा को नहीं है. श्राद्ध कर्म परम कल्याणकारी कार्य है. पितरों की संतुष्टि के लिए विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करना चाहिए. जो व्यक्ति सिर्फ देवकार्य करते हैं लेकिन श्राद्ध कर्म नहीं करते उनके देवकार्य का वह लाभ नहीं प्राप्त होता जो होना चाहिए था.
सरल भाषा में समझें तो जिस घर में बड़े-बूढ़े भूखे प्यासे हैं उस घर में आकर देवता भोज कैसे ग्रहण करेंगे? वैसे तो पितरों को प्रतिदिन जल से श्राद्ध करना चाहिए. जो ऐसा नहीं कर पाते उनके लिए पितृपक्ष में श्राद्ध के विशेष दिन बताए गए हैं. जो इन दिनों में भी श्राद्ध कर्म तर्पण आदि नहीं करते, पितृगण उनका रूधिर यानी रक्तपान करते हैं.
श्राद्ध की महत्ता ऐसी है कि माता सीता ने पितरों के लिए पिंडदान और श्राद्ध किया था. सप्तर्षियों में शामिल अगस्तय ऋषि ने एक बार वृक्ष से उलटा लटककर रोते हुए अपने पितरों को देखा. अपने पुण्यकर्मों से उन्हें स्वर्ग प्राप्त हुआ था किंतु फिर भी वे दुखी थे.
अगस्त्य ऋषि विवाह नहीं कर रहे थे. उनके पितरों को आशंका थी कि यदि वंश समाप्त हो गया तो उन्हें श्राद्ध तर्पण नहीं मिलेगा. इससे उन्हें स्वर्ग से निष्कासित होकर इसी तरह दुखी रहना पड़ेगा. पितरों द्वारा श्राद्ध कर्म जैसे पितृकार्य की महत्ता सुनने के बाद महर्षि अगस्त्य को निर्णय बदलना पड़ा था.
माना जाता है कि पितृपक्ष की अवधि में हमारे पितृगण पृथ्वी पर आते हैं. एक पक्ष यानी 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने और संतुष्ट होने के बाद पितर पितृलोक को लौट जाते हैं. इस दौरान पितृ अपने परिजनों के समीप ही स्थित रहकर आनंद का अनुभव करना चाहते हैं. इसलिए पितृपक्ष में कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे पितृगण की मर्यादा खंडित हो और वे नाराज हों.
पितरों को प्रसन्न रखने के लिए विशेष ध्यान देने की बातें-
- पितृपक्ष के दौरान यथासंभव ब्राह्मण, जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए.
- ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं. फिर यह भोजन पितृगणों को प्राप्त नहीं होता.
- पितृपक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को पीड़ा न दें.
- प्रतिदिन रसोई में से गाय, कुत्ते, कौआ, बिल्ली आदि के लिए सबसे पहले अंश निकाल दें. उन्हें खिलाएं. इससे पितरों को तृप्ति होती है.
- शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर रखने का भी विधान है.
- यथासंभव दवार पर आए किसी भी प्राणी का सत्कार करना चाहिए.
श्राद्ध की तिथि का निर्धारण कैसे करें. किस तिथि को होता है किसका तर्पण
कैसे करें पिंडदान, श्राद्ध कर्मः
- श्राद्ध कर्म तर्पण और पिंडदान में श्वेत वस्त्र ही धारण करें.
- जौ के आटा या खोया से पिंड का निर्माण कर लें.
- फिर चावल, कच्चा सूत, पुष्प, चंदन, मिठाई, फल, अगरबत्ती, धूप, मधु, तिल, जौ, दही आदि से पिंड पूजन कर लें.
- पिंड को हाथ में ले लें फिर इस मंत्र को पढ़ने के बाद पिंड को अंगूठा और तर्जनी के मध्य से छोडे़ें.तर्पण मंत्रः
इदं पिण्डं (फिर पितर का नाम लें) तेभ्यः स्वधा. - इस तरह कम से कम तीन पीढ़ी के पितरों को पिंडदान करना चाहिए.
- इस तरह पिंडदान करने के बाद निम्न मंत्र को तीन बार पढ़कर पितरों की आराधना करनी चाहिए. पितर पूजन का यह मंत्र स्वयं ब्रह्माजी द्वारा रचा गया है. पितृ आराधना एवं तर्पण मंत्र है-
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ।। - इसके बाद पिंड को उठाकर जल में प्रवाहित कर देना चाहिए.
- श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें. प्रातःकाल एवं सायंकाल में श्राद्ध की मनाही है.
- श्राद्ध करते समय दाहिने से बाएं नहीं बल्कि बाएं से दाहिने (घड़ी की सूई के घूमने की दिशा के विपरीत) परिक्रमा करनी चाहिए.
- श्राद्धकर्म दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूरा करें. दक्षिण ही यम की दिशा है.
- जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
- श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें. पशु-पक्षियों के प्रति प्रेमभाव रखें.
- पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करना उत्तम है. केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है.
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यह भ्रामक है कि इस अनुष्ठान में ब्राह्मणों को जितना भोजन खिलाएंगे वह सारा पदार्थ उसी आकार, वजन और मात्रा में पितरों को मिल जाएगा. वास्तव में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी है.
सच्चे मन, विश्वास, श्रद्धा के साथ किए श्राद्ध से पितरों को आत्मिक शांति मिलती है. वे हम पर आशीर्वाद की वर्षा करते हैं. श्राद्ध तिथि में पृथ्वी पर किया जाने वाला पिंडदान, दीर्घजीवन, आज्ञाकारी संतान, सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला होता है.
आमतौर पर पितृपक्ष 16 दिनों का होता है. जो भाद्रपद पूर्णिमा के साथ शुरू होकर आश्विन कृष्ण पक्ष तक चलता है. 2020 में पितृ पक्ष 1 सितंबर से शुरू होगा और 17 सितंबर को पूरा होगा.
पूर्णिमा का श्राद्ध- 1 सितंबर
प्रतिपदा का श्राद्ध- 2 सितंबर
द्वितीया का श्राद्ध- 3 सितंबर
तृतीया का श्राद्ध – 05 सितंबर
पंचमी का श्राद्ध – 5 सितंबर
चतुर्थी का श्राद्ध- 6 सितंबर
पंचमी का श्राद्ध- 7 सितंबर
षष्ठी का श्राद्ध – 8 सितंबर
सप्तमी का श्राद्ध – 9 सितंबर
अष्टमी का श्राद्ध – 10 सितंबर
नवमी का श्राद्ध – 11 सितंबर
दशमी का श्राद्ध – 12 सितंबर
एकादशी का श्राद्ध – 13 सितंबर
द्वादशी का श्राद्ध – 14 सितंबर
त्रयोदशी का श्राद्ध – 15 सितंबर
चतुर्दशी श्राद्ध – 16 सितंबर
सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध – 17 सितंबर
(डॉ धर्मेंद्र कुमार पाठक वेदज्ञ हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से वेद दर्शन और कर्मकांड में इन्होंने पीएचडी की शिक्षा प्राप्त की है. संप्रति राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में वेद विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं.)
पितृपक्ष में प्रभु शरणम् में आपको क्या-क्या जानने-सीखने को मिलेगाः
- श्राद्ध से जुड़ी सारी जानकारियां.
- श्राद्ध कर्म की विधि, श्राद्ध की तिथि
- श्राद्ध का माहात्म्य बताती पौराणिक कथाएं
- श्राद्ध का ज्योतिषशास्त्र में महत्व.
- किनका श्राद्ध किया जाता है किनका नहीं.
- कौन किसका श्राद्ध किस दिन कर सकते हैं.
- पितृदोष का निवारण कैसे होता है. कहां-कहां होता है. आदि, आदि.
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