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सत्यभामा के साथ गरूड पर सवार होकर भगवान श्रीकृष्ण प्रागज्योतिषपुर आए. नरकासुर का अभेद किला स्वयं मूर दैत्य ने तैयार किया था. वहां प्रवेश करना बहुत कठिन था.

नगर इस तरह से बनाया गया था कि उसके चारों के पहाड़ उसे किले की तरह सुरक्षित बनाते थे. चारों ओर जल की भरी खाई थी. उसके बाद आग की ऊंची दीवार खड़ी की गई थी.

उसके भीतर मूर दैत्य ने दस हजार सुदृढ जाल बिछा रखे थे. भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी गदा के प्रहार से पहाड़ों को चूर-चूर कर दिया औऱ तलवार से सारे जाल को काट-काटकर फेंक दिया.

भगवान ने पांचजन्य शंख से भयंकर नाद किया जिसकी ध्वनि से असुर सेना का मस्तक फट गया. मूर दैत्य जल में सो रहा था. इस नाद से उसकी नींद खुली. मूर के पांच मुख थे. उसने गरूड पर अपना त्रिशूल चलाया जिसे श्रीकृष्ण ने नष्ट कर दिया.

मूर बौखलाकर गदा लेकर भगवान की ओर दौड़ा जिसे भगवान ने चूर-चूर कर दिया. फिर भगवान ने चक्र चलाकर उसके पांचों सिर काट लिए. मूर के वध के बाद उसके सात पुत्र युद्ध के लिए आए.

भगवान और गरूड़ ने उनका सेना समेत कुछ ही देर में सफाया कर दिया. अब भौमासुर अकेला रह गया था. उसने भगवान पर वही शक्ति चलाई जिसके प्रहार से उसने इंद्र को अचेत कर दिया था.
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