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सारे सागर में सैनिक ही सैनिक नजर आने लगे लेकिन सभी मिलकर कुंदे को अपने स्थान से हिला तक न सके. सुबह से रात हो गई.
अचानक राजा ने काम रोकने का आदेश दिया. उसने विद्यापति को अकेले में ले जाकर कहा कि वह समस्या का कारण जान गया है. राजा के चेहरे पर संतोष के भाव थे. राजा ने विद्यापति को गोपनीय रूप से कहीं चलने की बात कही.
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राजा इंद्रद्युम्न ने कहा कि अब भगवान का विग्रह बन जाएगा बस एक काम करना होगा. मुझे भगवान के संकेत मिल रहे हैं. इंद्रद्युम्न जान गए थे कि प्रभु के विग्रह के लिए आई लकड़ी का कुंदा हिल-डुल भी क्यों नहीं रहा.
राजा ने कहा- विद्यापति इस दिव्य मूर्ति की अब तक जो पूजा करता आया था उससे तुरंत भेंट करके क्षमा मांगनी होगी. बिना उसके स्पर्श किए यह कुंदा आगे नहीं बढ सकेगा.
राजा इंद्रद्युम्न और विद्यापति विश्वावसु से मिलने पहुंचे. राजा ने पर्वत की चोटी से जंगल को देखा तो उसकी सुंदरता को देखता ही रह गया. दोनों भीलों की बस्ती की ओर चुपचाप चलते रहे.
करीब पांच लाख लोग रोज सुबह प्रभु शरणम् की सहायता से अपनी दैनिक पूजा करते हैं. ऐसा कई साल से लगातार हो रहा है. आप भी देखें.
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इधर विश्वावसु अपने नियमित दिनचर्या के हिसाब से गुफा में अपने कुलदेवता की पूजा के लिए चले. वहां प्रभु की मूर्ति गायब देखी तो वह समझ गए कि उनके दामाद ने ही यह छल किया है.
विश्वावसु लौटे और ललिता को सारी बात सुना दी. विश्वावसु पीड़ा से भरे घर के आंगन में पछाड़ खाकर गिर गए. ललिता अपने पति द्वारा किए विश्वासघात से दुखी थी. स्वयं को इसका कारण मान रही थी.
पिता-पुत्री दिनभर विलाप करते रहे. दोनों अनहोनी की आशंका से चिंतित थे. अब भीलों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. उनका कुल, उनके लोग नष्ट हो जाएंगे. दोनों यही कहते विलाप कर रहे थे.
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सारा दिन विलाप करते निकल गया. दोनों विलाप करते बेसुध हो जाते. सुध आती तो फिर रोने लगते और बेहोश हो जाते. ऐसे ही एक दिन बीत गया.
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HARI ANANT HARI KATHA ANANTA… JAI SHRI JAGNATH BHAGWAN.