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दोहा :
सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ।
संभु सुक्र संभूत सुत एहि जीतइ रन सोइ॥82॥

ब्रह्माजी ने सब देवताओं का दुःख देखा, समझा और व्यथित हुए. ब्रह्माजी ने कहा- इस दैत्य की मृत्यु शिवजी के वीर्य से पुत्र उत्पन्न के ही हाथों हो सकती है. उसके अतिरिक्त वह युद्ध में किसी से पराजित नहीं होगा.

ब्रह्माजी के मुख से अपने परमशत्रु के नाश का भेद जानकर भी देवताओं का दुख कम नहीं हुआ है. तारकासुर केवल शिव के तेज से उत्पन्न पुत्र के हाथों मारा जाएगा लेकिन शिवजी की पत्नी योगाग्नि में भस्म हो चुकी हैं. वह स्वयं योगमुद्रा में लीन हैं.

फिर यह कार्य संभव कैसे हो? महादेव तो मन के स्वामी हैं. वह एक बार में लाखों वर्षों का ध्यान लगाते हैं. उस पर से उन्होंने पुनःविवाह भी नहीं किया है. तारकासुर के अन्याय से मुक्ति कैसे हो, यही चिंतन हो रहा है? ब्रह्माजी उपाय देते हैं-

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