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पता नही क्यों आज मई ने मुझे ज़रूरत से ज़्यादा ही शराब पिलाई, उसके बाद उसने मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कुँए के पास ले गई और उसने मुझे नहलाया…

लेकिन आज थोड़ी देर हो गई थी- कल्लू “माई ओ माई” आवाज़ देता हुआ, आँगन में घुस आया और मुझे नहाते हुए देख कर ठिठक सा गया |

माई गुस्से से बोली,”हरामज़ादे, तेरे को भी अभी आना था क्या?”

कल्लू आँखे फाड़ फाड़ कर मुझे घूर रहा था | माई बोली, “देख क्या रहा है? पहले लड़की नही देखी क्या?”कल्लू डरते डरते बोला,”माई, मैने इसी लड़की को तो बाज़ार में देखा था।

माई ने उसे डांटा,  अब आँखे फाड़ फाड़ कर मत देख, रख दे सारा सामान बारामदे में और दफ़ा हो यहाँ से… और खबरदार मेरी लड़की की ओर दुबारा आँख उठा कर भी देखा तो… यह बेटी है मेरी ….”

कल्लू को मानो साँप सूंघ गया हो, उसने चुपचाप वैसा ही किया जैसा माई ने कहा |फिर माई बोली, “और जैसा मैने कहा रात को वैसा ही करना वरना तेरे ही हँसिए से मैं तेरी गर्दन उड़ा दूँगी…”

कल्लू के जाने के बाद माई ने बड़े लाड प्यार के साथ मेरा बदन पोंछ कर मेरे बाल सुखाए और मेरे बालों में कंघी की और कहने लगी, “मैं सोच रही थी, आज रात भेंट चढ़ने के बाद तू तो चली जाएगी… तू एक काम क्यों नही करती? तू मेरे पास ही क्यों नही रह जाती… बेटी बना कर रखूँगी तुझे मैं…”

“नही माई, मुझे जाना ही होगा…”, मैने कहा |माई थोड़ा मुस्कुराई और फिर उसने मुझे थोड़ी और शराब पिलाई |फिर वह बोली, “बस बिटिया, अब तो सिर्फ़ रात का ही इंतज़ार है..

आज ना जाने क्यों माई मुझे ज़रूरत से ज़्यादा शराब पिला रही थी और खाना कम खिला रही थी।

लेकिन मैं मन ही मन बस एक ही बात दोहरा रही थी कि- “हे मां काली मेरी रक्षा करो”

ना जाने मैं कब शराब के नशे में बेसुध हो गई थी, जब माई मुझे उठाने लगी तब तक काफ़ी रात हो चुकी थी, उसने मुझे नहा कर आने को कहा, मेरा नशा तब भी नही उतरा था- मैं किसी तरह लड़खड़ाती हुई कुँए के पास जा कर नहा कर आई- माई ने मुझे कमरे में ही रहने को कहा – इतने में फिर से घर के दरवाज़े के पास से कल्लू की आवाज़ आई, “माई ओ माई…

“माई, यह कल्लू इतनी रात को यहाँ क्या कर रहा है?”, मैने गौर किया की मेरी ज़बान भी लड़खड़ा रही है, माई ने मुझे कुछ ज़्यादा ही पिला दिया था |

“अब क्या बतायूं, बिटिया, तुझे भेंट चढ़ने के लिए मुझे इसके अलावा और कोई मिला ही नही…”

“बात को समझ ने की कोशिश कर, बेटी… ‘वह’ एक आत्मा है, उसे  किसी मरद के शरीर की ज़रूरत पड़ेगी…मैं ‘उसकी’ आत्मा को कल्लू के शरीर में प्रवेश करवाउंगी… शरीर कल्लू का होगा और आत्मा ‘उसकी’…

मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई, मेरा नशा मानो उतर सा गया… आज मेरा सर्वनाश होने वाला था वह भी कल्लू डोम के हाथों…

“आप को और कोई नही मिला, माई?”, मैने झुंझला कर पूछा

“अब क्या बतायूं, बिटिया… शैतानी आत्मा किसी राजा महाराजा, या फिर किसी राजकुमार के शरीर में तो आएगा नही… इसलिए मैने कल्लू डोम को ही चुना… कुछ देर बाद ही तुझे भेंट चढ़ना है…”, यह कह कर माई कमरे से चली गई |

मैं विस्मित हो कर कमरे में बैठी रही, मुझे समझमें नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ… लेकिन फिर से मुझे दूर से मंदिर की घंटिया और शंख की ध्वनि सुनाई देने लगी… मैं मन ही मन दोहराने लगी, ‘हे मां काली मेरी रक्षा करो…’

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