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कन्या ने भगवान को विनयपूर्वक प्रणाम करके अपना परिचय पंडित रत्नाकर की पुत्री त्रिकुटा के रूप में दिया फिर अपनी प्रतिज्ञा बतायी.
त्रिकुटा जान गई थीं कि उनके सामने साक्षात भगवान श्रीराम ही खड़े हैं इसलिए उन्होंने निवेदन किया कि आप मुझे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लें.
इस पर भगवान श्रीराम ने कहा- यह संभव नहीं है. मैं एकपत्नीक रहने के संकल्प से बंधा हूं. अपनी पत्नी के अपहर्ता को दंड देने के लिए यहां तक सेना सहित आय़ा हूं.
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त्रिकुटा को यह सुनकर आघात पहुंचा. उन्होंने ने अपने कठोर तप का वास्ता दिया और भगवान से विवाह करने की पुनः याचना की.
त्रिकुटा ने कहा- प्रभु क्या मेरा यह तप व्यर्थ गया. मेरे तप में वह शक्ति नहीं कि आपको प्राप्त कर सकूं. मेरा तप अभी कम है तो मैं इसे और कठोर करूंगी और तब तक जारी रखूंगी जब तक मेरी अभिलाषा पूरी नहीं हो जाती.
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भगवान ने कहा- जब मैं सीता का पता लगाकर लौटूंगा तब तुम्हारे पास आऊंगा. यदि तुम मुझे पहचान लोगी तो मैं तुम्हारी इस बात पर सही निर्णय करूंगा.
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To fir bhaironath aur dhyanu bhagat ki story, Galat hai.
ऐसा नहीं कहा हमने… मां की लीला तो मां ही जानें…यह कथा एक प्रसिद्ध कथा है. जो मैंने अंत में लिखा भी है. भैरवनाथ की बात भी पोस्ट के अंत में है और आप जो प्रसंग कह रहे हैं उसका भी वर्णन आएगा..
Ma ka kripa sadaeba meray Paribar per rahay .jai Mata Dee
ज्ञान वर्धक
Your Comment JAY MATA DI. JAY MAA. SABHI BHAKTO PE KRIPA DRISHTI RAKHNA MATA. JAY HO.