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पूतना के स्तनों में दूध उतर आया. उसने अपने स्तनों पर विष लगा रखा था. वह बाल-गोपाल की हत्या के उद्देश्य से उन्हें दूध पिलाने लगी जिनके नयन से अमृत बरसते हैं उन भगवान का विष क्या बिगाड़ेगा.

भगवान ने उसके दोनों स्तनों से दूध पीया और उसे तृप्त किया. पूतना आनंद विभोर हो रही थी. वह चाहती ही नहीं थी कि यह सुख कभी समाप्त होने पाए पर भगवान को तो उसका उद्धार भी करना था.

उन्होंने पूतना के प्राण खींचने शुरू कर दिए. वह पीड़ा से चिल्लाने लगी लेकिन श्रीकृष्ण तो छोड़ते ही न थे. दर्द से छटपटाती व असली रूप में आ गई लेकिन प्रभु ने तब भी न छोड़ा. अंततः उसके प्राण निकल गए और छटपटाकर धरती पर गिरी.

पूतना का उद्धार हो गया था. छह कोस की भूमि में जो कुछ भी था वह पूतना के शरीर के नीचे दबकर समाप्त हो गया.

देवकी और रोहिणी समेत सभी स्त्रियों ने यह देखा तो भयभीत हो गईं. पूतना के मृत शरीर के ऊपर खेल रहे श्रीकृष्ण को उतारा. उन्हें पवित्र करने के लिए गोमूत्र से उनका स्नान कराया गया. उनकी रक्षा के लिए देवताओं की स्तुति की गई.

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अपने बालक के विषय में अंजान माताएं देवेश्वर की रक्षा का भार देवताओं पर डाल रही थीं. उन पर किसी दुष्ट आत्मा का साया न आया हो इसलिए नजर उतारने के लिए उनके ऊपर से गाय की पूंछ घुमाई गई. भगवान मंद-मंद मुस्कुराते रहे.

अब वह कैसे बताएं कि आपके समान वह भी मेरी माता बनकर ही आई थी. उसे तो मैंने यह वरदान तब ही दे दिया था जब मैंने वामन अवतार लिया था.

असुरराज बली को इंद्रपद दिया था तो उसकी पुत्री को मातृत्व सुख का वरदान देना पड़ा था. हुआ यूं था कि भगवान वामन का रूप धरकर दानवेंद्र बली के यज्ञ में पहुंचे थे.

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