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कवी इससे दुखी थे और अंगिरा को उन्होंने अपनी पीड़ा बताई. कवी ने अंगिरा से कहा- गुरुवर यदि गुरू शिष्यों में भेदभाव करने लगे तो यह कदापि धर्मानुकूल नहीं होता. शिष्य पुत्र समान होता है. इसलिए आपका भेद मुझे दुखी करता है.

अंगिरा ने कवी की बात अनसुनी कर दी और पहले के भांति दोनों को पृथक-पृथक पढ़ाते रहे. अंततः कवी आश्रम छोड़कर अपने घर लौट चला. कवी, गौतम मुनि के आश्रम पहुंचा और उनसे अंगिरा से श्रेष्ठ गुरू के बारे में पूछा जिससे वह शिक्षा ले सकें.

गौतम ने कहा- संसार में केवल भगवान शिव ही एकमात्र योग्य गुरु हैं. वह ही सृष्टि के गूढ़ से गूढ़ रहस्यों को जानते है. उनके लिए कोई भी विद्या अछूती या अदृश्य नहीं है.

कवी ने गौतम मुनि से पूछा कि भगवान शिव के दर्शन कैसे होंगे. गौतम मुनि ने उन्हें शिवमंत्र देकर आराधना की विधि बताई और शिव को प्रसन्न करने का परामर्श दिया.

कवी ने महादेव गौतम की बताई विधि से शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप शुरू किया. एक बालक के तप से प्रसन्न होकर प्रभु ने दर्शन दिए और पूछा कि इस आयु में इतना कठिन तप क्यों कर रहे हो.

कवी ने कहा- प्रभु आपसे क्या छुपा. तप का उद्देश्य भली-भांति जानते हैं. मेरे गुरू बनकर मुझे दीक्षित करें. शिवजी ने सभी लौकिक और अलौकिक शास्त्रों का ज्ञान दिया. साथ ही मृत प्राणियों को जीवित कर देने वली मृत संजीविनी विद्या भी सिखाई जिसे देवता भी नहीं जानते थे.
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