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शुक्राचार्य महादेव के लिंग के रास्ते शुक्ररूप में बाहर आए. इसलिए उन्हें शुक्राचार्य कहते हैं. इस बार शिव ने उन्हें भस्म करने के उद्देश्य से पकड़ने को हाथ बढाया तो वह माता पार्वती की शरण में चले गए.

माता ने सदाशिव से कहा- यह शुक्र रूप में बाहर आया है इसलिए आपके पुत्र सदृश है. मैं इससे पुत्रवत स्नेह देती हूं. महादेव ने दैत्यगुरू को माफ कर दिया, शुक्राचार्य ने भी अपने कार्यों के लिए क्षमा मांगी.

एक तरफ तो अंधक को प्रह्लाद तरह-तरह से शिव से शरण में जाने को समझा रहे थे. उधर उसे पता चला कि महादेव ने शुक्राचार्य को भी लील लिया है. इससे वह और बौखला गया और शक्तियां जमा करने लगा.

प्रह्लाद अंधक से पूर्व असुरों के राजा थे. उन्हें अपने कुल का विनाश नजर आ रहा था इसलिए उन्होंने अंधक को कई उत्तम कथाएं सुनाई थीं. कथा का अगला भाग कुछ देर में अगले पोस्ट में पढ़िए.
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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